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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ६ ०३ सू० महाकाल्पकर्मनिरूपणम् ८२७ 'सया समियं पोग्गला छिज्जंति' सदा समितं पुद्गलाश्छिद्यन्ते ? 'विद्धस्संति, परिविद्धस्संति ? ' सदा समितं पुद्गलाः विध्वंसन्ते ? परिविध्वंसन्ते ? ' सयासमियं च णं तस्स आया सुरूवत्ताए पसत्थं नेयव्वं सदा समितं च खलु तस्य अल्पकर्मणः, अल्पक्रियस्य, अल्पास्रवस्य, अल्पवेदनस्य जीवस्य आत्मा मुरूपतया . प्रशस्तं ज्ञातव्यम् , अत्र वर्णादिपदानि प्रशस्तरूपेण व्याख्येयानि, तथा च सुवर्णतया में अकर्मपर्याय से उस आत्मामें स्थित रहते आते हैं यही सिद्धान्तकी पात (सव्वओ पोग्गला परिविद्ध संति) इस पद द्वारा पुष्ट की गई हैसो इसी बात को गौतम ने प्रक्षु से प्रश्न के रूप में पूछा है । (सया समियं पोग्गला भिजति ) सदा निरन्तर कलंपुद्गल खेद को प्राप्त होते है क्या ? (सया सषियं पोग्गला छिज्जति) लदा निरन्तर कर्मपुद्गल छेद को प्राप्त होते हैं क्या ? (चिद्ध स्तंति परिचिद्धस्संति) विध्वंस को प्राप्त होते हैं क्या, समस्त रूप से नाश होते हैं क्या? इन प्रश्नों को करने की आवश्यकता इसलिये हुई कि जब पूर्वोक्त रूप से आत्मा से कर्मपुद्गलों का भेदन छेदन पूछा गया है तो वहां निरन्तर छेदन भेदन आदि होने की बात नहीं पूछी गई है अतः इन प्रश्नों द्वारा यही बात यहां पूछी गई है (सया समियं च णं तस्स आया सुरूवत्ताए पलत्थं नेयव्वं) अल्पकर्म आदि विशेषणों ले विशिष्ट उस जीव का आत्मा बाय शरीर रूप आत्मा-क्षण २ में क्या अच्छेरूप में, अच्छेवर्ण में, अच्छे गंध सें. આવે છે કે જ્યારે તે કર્મ પુદ્ગલે સર્વથા અકર્મપર્યાયરૂપે તે આત્મામાં રહેવા मागे छ. ये सिद्धान्तना पात (सवओ पोग्गला परिविद्धसति) मा सूत्र દ્વારા પ્રકટ કરી છે.
गौतम स्वामी प्रश्न द्वारा से वात प्रभुने पूछी छ, ( सया समिय पोगला भिज्ज ति) Hard ! म माहिया युटत ना भयो शु सहा निरन्तर हातi २७ छ १ (खया समिय पोग्गला छिज्जति ) शुतना मपुर सह निरन्तर छे.तi २९ छ ? (विद्धस्सति परिविद्धस्सति ) शु' તેનાં કર્મ પુલનું આ પ્રકારના પ્રશ્નો પૂછવાની આવશ્યકતા એ છે કે પૂર્વોક્ત પ્રશ્નોમાં કમપુદ્ગલોનું નિરન્તર ભેદન, છેદન આદિ થવાની વાત પૂછવામાં આવી નથી. છેદન, ભેદન આદિ નિરન્તર થયા કરે છે કે નહીં, તે જાણવાને માટે (सयासमिय' पोग्गला भिज्जति) त्या प्रश्न पूछवाम माया छे. ( सया. समिय' ष णं तस्स आया सुरूवत्ताए पसत्य नेयव्यं ) HEB माहिथी युक्त જીવને આત્મા–બાહ્ય શરીર રૂપ આત્મા શું ક્ષણે ક્ષણે સુરૂપતા, સુવર્ણયુક્તતા,