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प्रमैयचन्द्रिका टीका शे० ६ ० ३ महांकाल्पकर्म निरूपणम् पुरुषादि कर्मवध्नाति ? इत्यादिविचारः ५ 'संजय ' संयतः कः संयतादिः ? इत्यादिनिरूपणम् ६ ‘सम्मट्ठिी' 'सम्यग्दृष्टिः' का सम्यगूदृष्टयादिः ? इत्यादिनिरूपणम् ७। एवं 'सन्नी' इत्यादि । 'संज्ञी, भव्यः, दर्शनी, पर्याप्तका, भाषकः, परीतः, ज्ञानी योगी, उपयोगी, आहारकः, सूक्ष्मः, चरमः ' एतान् समाश्रित्य 'बन्धश्च ' बन्धविषयकं निरूपणम् ८, 'अप्पबहु" 'अल्पबहुत्वम् । एतेषामेव उपर्युक्तानां स्त्रीप्रभृतीनां कर्मबन्धकानां परस्परम् अल्प-बहुत्वविवेचनं प्रतिपादितम् ॥ २ ॥
महाका-ल्पकर्मवक्तव्यता । महाकर्माल्पकर्मादीनां जीवानां दुःखमुखादिवन्धतारतम्यं वस्त्रदृष्टान्तेन है कि क्या स्त्री अथवा पुरुष आदि जीव कर्म का बंध करते हैं ? इत्यादि (संजय) पद से संयत आदि कोन हैं ? इत्यादि विचार प्रकट किया गया है। (सम्मदिट्टी) पद यह प्रकट करता है कि सम्यग्दृष्टि आदिकौन हैं ? (सनी) संज्ञो-(भविए) भव्य (दसण) दर्शनी, (पज्जत्त) पर्याप्तक (भासय) भाषय (परित्ते) परीत, (नाण) ज्ञानी, (जोगे) योगी, (उवओगाऽऽहारग) उपयोगी, आहारक, (सुहुम, चरिम) सूक्ष्म, चरम ये सब पद यह बतलाते हैं कि इनको अश्रित करके (बंधेय) बन्धवि. षयक निरूपण हुआ है (अप्पबहुं ) यह पद यह कहता है कि इन्हीं उपर्युक्त स्त्री आदि कर्मबन्ध जीवों का परस्पर में अल्प बहुत्व का विचार किया गया है। પુરુષ આદિ છવો કર્મને બંધ કરે છે? ઈત્યાદિ.
" सजय " मा ५४थी सयत माहिनु नि३५ ४२पामां आव्यु छे. " सम्मद्दिट्ठी " AL ५६ मे ८ ४रे छे है सभ्यष्टि मा छ ?
"सन्नी" सज्ञी, “ भविए " सव्य, "दसण" शनी, "पज्जत्त" पर्या, “भासय " साप४, “ परित्ते" " नाण" ज्ञानी, “जोगे" योगी, " उवओगाऽऽहारग" उपयोगी, माडा२४, “ सुहुम, चरिम " सूक्ष्म, १२ मा मयां पहे। ये मताव छ मान मनुलक्षीन "बंधेय " विषय નિરૂપણ આ ઉદ્દેશકમાં કરાયું છે.
" अप्पबहुं " A १४ मे ४८ अरे छ है 21 देशमा श्री माह કર્મબંધક જીવોમાં કાણ વધારે છે અને કહ્યું અલ્પ પ્રમાણમાં છે. આ રીતે તેમના અલ્પમહત્વનું આ ઉદેશકમાં પ્રતિપાદન કરાયું છે.