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भगवतीसूत्रे
गेण विसया च ' यथा वस्त्रे पुद्गलाः प्रयोगेण-प्रयोगद्वारा विस्रसया स्वभाविक तया च वध्यन्ते तथा जीवानामपि किम् कर्मपुद्गलाः प्रयोगेण विस्रसया च वध्यन्ते ? इत्यादि विवेचनम् २, ' सादीए ' ' सादिकः ' - यथा वनस्य सादिः पुद्गलचयः, एवं जीवानामपि किम् सादिः कर्मपुद्गलचयः १ इत्यादिनिरूपणम् ३, कम्म' कर्मस्थितिः कर्मणां स्थितिनिरूपणम् ४, ' इस्थी ' स्त्री' किम् स्त्री,
उद्देशक के अर्थ को संग्रह करने वाली इन दो गाथाओं को कहा है-' ( कम ) इत्यादि तथा ( भविए) इत्यादि - ( बहुकर्म ) इस पद से प्रश्नरूप में यह प्रकट किया गया है कि जिस जीव के कर्म बहुत हैं - उस के क्या कर्मपुलों का सर्व प्रकार से बंध होता है ? इत्यादि ( वत्थपोग्गल पओगसा वीससा य) इस पद द्वारा प्रश्न रूपमें यह प्रकट किया गया है कि जिस प्रकार से वस्त्र पुल प्रयोगद्वारा और स्वभाविक रीति से बंधते हैं, उसी तरह से क्या जीवों के भी कर्मपुल प्रयोग और स्वभाव से बंधते हैं ? इत्यादि ( सादिक :) इस पद द्वारा प्रश्नरूप में यह प्रकट किया गया है कि जिस प्रकार से वस्त्र में सादि पुगलों का चय होता है, उसी प्रकार से क्या जीवों को भी सादि कर्म पुलों का चय होता है ? इत्यादि (कम्महि ) इस पद द्वारा कर्म की स्थिति का विचार प्रकट किया गया है ( इत्थी ) इस पद द्वारा यह पूछा गया
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बहुकम्म
સૂત્રકારે આ ઉદ્દેશકની શરૂઆતમાં એ સંગ્રહગાથાઓ આપી છે. તે ગાથાઓ આ ઉદ્દેશકમાં આવતા વિષયને પ્રકટ કરે છે. પહેલી ગાથા इत्यादि मी गाथा " भविष्" इत्याहि छे, " મહુકમ આ પદ્મથી પ્રશ્નરૂપે એ પ્રકટ કરવામાં આવ્યુ છે કે જે જીવનાં કમ ઘણાં જ છે એવો મહુકમ, જીવ શુ' સ` પ્રકારે કર્મના અશ્વ કરે છે ? ઈત્યાદિ.
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वत्थ - पोग्गल - पओगवा वीससा य" माय द्वारा अश्र३ये मे अउट કરવામાં આવ્યુ છે કે જેવી રીતે વસ્ત્રમાં પુદ્ગલ પ્રચાગદ્વારા અને સ્વાભાવિક રીતે ખંધાય છે, એજ પ્રમાણે શુ જીવોનાં કર્મ પુદ્ગલ પણ પ્રચાગ અને સ્વભાવથી ખ"ધાય છે ? ઇત્યાદિ.
“ खादिकः " २मा यह द्वारा अश्र३ये मे आउट श्यामां मान्युछे જેમ વજ્રમાં સાદિ ( આદિ યુક્ત) પુદ્ગલેના ચય થાય છે, તેમ શું જીવોમાં પણુ સાહિ કમ પુદ્ગલાના ચય થાય છે.
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कम्मट्ठिइ " भी यह द्वारा उनी स्थितिनु अतिपाहन पुरवामां माव्यु छे.
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इत्थी " भी यह द्वारा मे आउट श्वासां माव्यु शु श्री अथवा