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भगवती यिकाः करणतो विमात्रया वेदनां वेदयन्ति, नो अकरणतः। औदारिकशरीराः सर्वे शुभाशुभेन विमात्रया। देवा: शुभेन ॥ ___टीका-'कइविहे णं भंते ! करणे पण्णत्ते ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधं कियत्प्रकारम् खलु करणं मुखदुःखानुभवनिमित्तभूतं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह अनुभव करते हैं ? (णवरं-इच्चेएण सुभाऽसुभेणं करणेण पुढवीकाइया करणओ वेमाथाए वेयण वेयंति, णो अकरणओ) हे गौतम ! पृथिवीकायिक जीव शुभाशुभ कितने भेद कदाचित् शातारूप और कदाचित अशातारूप वेदना का अनुभव करते हैं। अकरण से-करण के विना नहीं। यही यहां पर विशेषता है । (ओरालिय सरीरासव्वे सुभासुभेणं करणेण वेमायाए-देवा सुभेणं सायं) जितने भी औदारिक शरीरवाले जीव हैं वे सब ही शुभ और अशुभरूप करण से ही दोनों प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं देव शुभकरण से केवल शातावेदना को अनुभव करते है। ____टीकार्थ-पहिले जीवों की वेदना का कथन किया गया है। वह वेदना करण द्वारा होती है इस कारण सूत्रकार इस सूत्र से उसी का निरूपण कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-"कविहेण भंते ! करणे पण्णत्ते ) हे भदन्त ! करण कितने प्रकार का होता है ? सुख और दुःख के अनुभव करने में जो निमित्त भूत होता है उसका नाम करण है सो इस करण के किनने भेद हैं ? इस (णवर-इच्चेएणं सुभाऽसुमेणं करणेणं पुढविक्काइया करणओ वेमायाए वेयणं वेयंति, णो अकरणओ) 8 गौतम ! पृथ्वीय वे शुभाशुभ ४२४थी यारे શાતવેદનાનું વેદન કરે છે અને કયારેક અશાતવેદનાનું વેદન કરે છે, અક२थी तेया तेनु वहन ४२॥ नथी, मेसी मही विशेषता छे. ( ओरालिय सरीरा सव्वे सुभासुभेण करणेण वेमायाए -देवा सुमेण सायं ) समस्त मोहारि४ શરીરવાળા જી શુભ અને અશુભરૂપ કરણથી જ બન્ને પ્રકારની વેદનાનું વેદન કરે છે. દેવ શુભરણથી ફક્ત શાતવેદનાને જ અનુભવ કરે છે.
ટીકાઈ–આગલા પ્રકરણમાં જેની વેદનાનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. તે વેદના કરણ દ્વારા થતી હોય છે. તે કારણે સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં કરણનું નિરૂપણ કરે છે.
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पछ "कइविहेण भते ! करणे पण्णत्ते ? " महन्त ! ४२६ eai प्रान ४i छ १ (सुम मन દુઃખને અનુભવ કરવામાં જે નિમિત્તરૂપ હોય છે, તેને કરણ કહે છે.)