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________________ प्रमैयन्द्रिका टीका श०५ ७० १ सू० ३ प्रस्तुविशेषादिस्वरूपनिरूपणम् ६३ समये वर्षाणां प्रथमः समयः' इति संग्राह्यम् तथा च दक्षिणोत्तरभागे वर्षाऽऽरम्भ समयाऽव्यहितोत्तरसमय एत्र पूर्वपश्चिमभागेऽपि वकालारम्भो भवतीत्युत्तरम् । पुनौतमो दाढयांग पृच्छति-'जयाणं भते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'जंबुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स' मन्दरस्य 'पव्ययस्स' । पर्वतस्य 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्ये पूर्वभागे खलु 'वासाणं' वर्षाणाम् 'पढमे समए ' प्रथमः समयः 'पडिवज्जइ ' प्रतिपद्यते ' तयाणं' तदा खलु पच्चस्थि , मेण वि' पश्चिमेऽपि खलु 'वासाणं पढमे समए ' वर्षाणां प्रथमः समयः 'पडि. वज्जइ' प्रतिपद्यते ? 'जयाणं' यदा खलु 'पच्चस्थिमेण वि' पश्चिमेऽपि 'वासाणं पढमे समए' वर्षाणां प्रथमः समयः 'पडिवज्जइ ' प्रतिपद्यते ' तयाणं जाव'• तदा खलु यावत्-जम्बूद्वीपे द्वीपे इत्यर्थः मंदरस पव्ययस्य ' मन्दरस्य पर्वतस्य वर्षाणां प्रथमः समयः ) इस पाठ का संग्रह हुआ है । तथा च दक्षिणोत्तरभाग में वारंभ समय के अव्यवहित उत्तर समय में ही पूर्वपश्चिमभाग में भी वर्षाकाल का आरंभ होता है। ऐसा यह उत्तर है। अब गौतम पुनः दृढता निमित्त दूसरी तरह से प्रभु से पूछते हैं कि (जया णं भंते ! ) हे भदन्त ! जब (जंबुद्दीवे दीवे) जंबूद्वीप नाम के दीप में (मंदरस्स पव्वयस्स ) मंदर पर्वत के ( पुरथिमेणं ) पूर्वभाग में (वालाणं) वर्षा का (पढमे समए ) प्रथम समय (पडिवज्जइ ) होता है (तया ण) तब (पञ्चत्थिमेणं वि) पश्चिमभाग में भी ( बोसाणं ) वर्षा का (पढमे समए ) प्रथम समय (पडिवज्जइ ) होता है । अतः (जया णं) जब ( पचत्थिमेण वि) पश्चिम भाग में भी (वासाणं) वर्षा का ( पढमे समए) प्रथम समय (पडिवज्जइ ) होता है तब (जाव) यावत् (मंदरस्स पव्वयस्स मंदर पर्वत के (उत्तर दाहिणेणं उत्तर दक्षिण भाફેરફાર વિનાને સમય તાત્પર્ય એ છે કે જબદ્વીપના દક્ષિણા અને ઉત્તરાર્ધમાં વષોઋતુના પ્રારંભનો જે સમય છે. એજ સમયે મંદિરના પૂર્વ અને પશ્ચિમ ભાગમાં પણ વર્ષાઋતુને પ્રારંભ થાય છે. वे गौतम स्वामी या विषयमा मील शत प्रश्न पूछे छ-(जयाणं मते ! ) 3 महन्त ! न्यारे (जवही दीवे) बी५ नामना दीपभो (मंदसरस् पव्वयस्स) भ२ पतना (पुरथिमे ण) पूलामा (वासाण पढमे समए) वर्षातुनी प्रथम समय (पडिवजइ) डाय छ, ( तयाण') त्यारे " पच्चत्थिमेण वि" पश्चिम भागमा पy " वासाण" शु वर्षातुने। " पढमे समए पडिवजह " प्रथम समय डाय छ ? मन "जाव' मंदयरस्स - पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं तरपच्छाकडसमयंसि वासाण पढमे समए पडिवज्जइ ।
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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