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भगवती रोल्लेखन-भङ्गकरणादिप्रक्रियं स्यात् । एवं गौतमेन कथिते सति भगवान् एतं दृष्टान्तं दाष्र्टान्ति के योजयति-'एवामेव गोयमा! समणाणं निग्गंथाणं अहावायराई कम्माइं सिढिलीकयाई, निट्ठियाईकयाई, विप्परिणामियाइखिप्पामेव विद्धत्थाई भवंति' हे गौतम ! एवमेव खञ्जनरागरक्तवस्त्रस्य सुप्रक्षालनीयत्वादिवदेव श्रमणानां निर्गन्थनाम् यथावादराणि स्थूलतरस्कन्धानि स्थूलप्रकाराणि असाराणि कर्माणि शिथिलीकृतानि 'लथत्वमापादितानि भवन्ति, निष्ठितानि कृतानि. निःसत्तकानि है, सुवाम्यतरक-धब्वे वगैरह जिसके अच्छी तरह से धोये जा सके ऐसा होता है और सुपरिकर्मतरक अनायास जिसमें चित्रोल्लेखन और रचना करने रूप आदि क्रियाएँ की जा सके ऐसा होता है ऐसा जप गौतम ने कहा-तो इसी दृष्टान्त को दान्ति में योजित करते हुए प्रभु ने उन्हें समझाया-(एवामेव गोयमा) इसी तरह से हे गौतम! (समणाणं निग्गंथोणं अहाबायराई कम्माइं सिढिलीकथाइं निहियाई कयाई विपरिणामियाई खिप्पामेव विद्वत्थाई भवंति) श्रमण निर्ग्रन्थों के जो यथायादर कर्म होते हैं, वे शिथिलीकृत होते हैं, निष्ठित होते हैं और विपरिणामित होते हैं-इसी कारण वे शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैंतात्पर्य कहने का यह है कि श्रमण निर्ग्रन्थों की आत्मा सम्यग्दर्शन से वासित रहा करती है इस कारण उनके कर्म जैसे मिथ्यादृष्टियों की आत्मा में गाढरूप आदि विशेपणों से विशिष्ट होते हैं वैसे वे यहां नहीं होते हैं-यहां तो वे खंजनराग से रंगे हुए वन की तरह शिथिल आदि विशेषणों वाले होते हैं-जैसे खंजन (पतंग) रंग से रंगे हुए वस्त्र
ધોઈ શકાય એવું) હોય છે, સુવાખ્યતરક (સુગમતાથી ડાઘ દૂર કરી શકાય તેવું) હોય છે, અને સુપરિકમેતરક (સરળતાથી ચિત્રાલેખન, વિશિષ્ટ રચના આદિ કરી શકાય તેવું) હોય છે. હવે આ દષ્ટાન્તને આધારે પ્રમાણે નિ:
ના કમેને પણ ખંજન રાગથી રંગેલા વસ્ત્રની જેમ સુવિથ બતાવવાને भाट महावीर प्रभु ४ छ-" एवामेव गोयमा ! " अ प्रभा ले गौतम ! (समणाणं निग्गंथाणं अहाथायराई कम्माई सिढिलोकयाई, निद्वियाई कयाई, विप्परिणामियाई खिप्पामेव विद्धत्थाई भवति) श्रम नि थाना २ स्थूल કર્મો હોય છે, તે શિથિલીકૃત હોય છે, નિષિત-દૃઢ હોય છે, તે કારણે તેમને જલદી નાશ થઈ જાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે શ્રમણ નિર્ચાને આત્મા સમ્યગ્દર્શનથી યુક્ત હોય છે. તેથી તેમનાં કર્મ મિથ્યાષ્ટિઓની જેમ આત્માની સાથે ગાઢીકૃત (દૃઢ રૂપે સંબદ્ધ) હેતાં નથી. પણ તેમના કર્મો તો ખંજન