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________________ ७६० भगवतीखो उच्यते-यो महावेदनः यावत्-प्रशस्तनिर्जरकः १ गौतम ! तद् यथा नाम दे बने स्याताम् , एकं वस्त्रं कर्दमरागरक्तम् , एकं वस्त्रं खञ्जनरागरक्तम् , एतयोः खलु गौतम! द्वयोः वस्त्रयोः कतरद् वस्त्रं दुधौततरकं चैत्र, दुर्वाम्यवरकं चैव, दुष्परिकर्मतरक चैव, कतरद् वा वस्त्रं सुधौततरकं चैव, सुवाम्यतरकं चैव, सुपरिकर्मतरकं चैव जीव क्या अप्रणनिग्रन्थों की अपेक्षामहानिर्जराबाले होते हैं ? (गोयमा! णो इणढे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ जे महावेयणे जाव पसत्थनिजराए) हे भदन्त ! ऐसो आप किस कारण से कहते हैं कि जो महावेदनावाला होता है यावत् प्रशस्त निर्जरावाला होता है ? (गोयमा ! से जहानामए दुवे वत्था सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते, एगे वत्थे खंजणरागरत्ते, एएसिणं गोयमा! दोण्हं वत्थाणं कयरे वत्थे दुद्धोयतराए चेव, दुवामतराए चेव) हे गौतम! जैसे दो वस्त्र हों-इनमें एक वस्त्र कर्दमराग से रॅगा हुआ हो और दूसरा वस्त्र खंजन रंग से रंगा हुआ हो तो कहो गौतम ! इन दोनों में से कौन सा वन दुधौंततर-बड़ी मुश्किल से जिसका रंग धोकर दूर किया जा सके ऐसा होता है दुर्वाम्यतर-जिसके धब्बे दुःख से दूर किये जा सके ऐसा होगा (दुप्परिकम्मतराए चेव) और दुष्परिकर्मतर-जिसमें कठिनाई से चित्र की अङ्कन आदि क्रियाएँ की जा सकें ऐसा होगा? तथा (कयरे वा वत्थे सुद्धोयतराए चेव, सुवोमतराए चेव, सुपरिकम्म હે ભદન્ત! શું છઠ્ઠી અને સાતમી નરકના નારક શ્રમણ નિર્ચ કરતાં મહા निवार साय छ ? (गोयमा ! णो इणठे समढे) गौतम ! मेहेतु નથી. એટલે કે તેઓ શ્રમણ નિગ્રંથ કરતાં મહા નિર્જરાવાળા હોતા નથી. (से केणढण भते! एवं वुच्चइ ? जे महावेयणे जाव पसत्थनिज्जराए) 3 ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે “જે મહાવેદનાવાળા હોય છે” ( यावत् ) " प्रशस्त निशाणा डाय छ १) (गोयमा ! से जहानामए दुवे वत्था सिया, एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते, एगे वत्थे खजणरागरते, एए सिं गं गोयमा ! दोण्हं वत्थाणं कयरे वत्थे दुद्धोयतराए चेव, दुवामतराए चेव) गौतम! पारी में 4 छ, तभानु मे १० કીચડથી ખરડાયેલું છે અને બીજું વસ્ત્ર ( ખંજનરાગથી રંગેલું ) પતંગ રંગથી, તે છે ગૌતમ ! તે બન્ને વસ્ત્રમાંથી કયા વસ્ત્રને દેવામાં વધારે મુશ્કેલી પડશે ? અને કયા વસ્ત્રપરના ડાઘ દૂર કરવામાં વધારે भुश्मा ५ ? (दुप्परिकम्मतराए चेव ) मन 40 १७५२ मित्राबेमन आदि ४२ पधारे अश्छेदा थशे. १ तथा (कयरे वा वत्थे सुद्धोयतराए चेव, सुवामत
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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