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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० उ०९ सू०४ पापित्यीय-महावीरयोर्वक्तव्यता ७२३ भागे विशालः ब्रह्मलोकप्रदेशस्य पश्चरज्जुविस्तारत्वात् स लोकः पृथुलोऽस्ति । तमेव दृष्टान्तद्वारा प्रतिपादयति- अहे पलियंकसंठिए ' अधः पल्यङ्कसंस्थितः अधः-अधोभागे पर्यङ्काकारः विस्तृतत्वात् 'मझे वरवइरविग्गहिए' मध्ये वरवज्र. वद विग्रहः शरीरम्-आकारो यस्त स तया वरवज्रविग्रहिका मध्यकृशत्वेन उत्तमवज्राकार इत्यर्थः 'उपि उद्धमुइंगागारसंठिए' उपरि ऊर्वमृदङ्गाकारसंस्थितः, ऊर्ध्वः न तु तिरश्वीनो यो मृदङ्गो वायविशेषो मर्दलः, तस्याकारेण संस्थितो यास शराव संपुटाकार इत्यर्थः स लोकः, इति पूर्वेणान्वयः संसि च णं सासयंसि लोगसि अणादियंसि, अणवदग्गंसि, परित्तंसि, परिवुडंसि' तस्मिंश्च खलु शाश्वते अनादिके एक राजू का विस्तार वाला है इस कारण मध्य में यह संक्षिप्त है संकीर्ण है। ऊपर में यह विशाल इसलिये है कि ब्रह्मलोक का विस्तार पांच राज्जू का है । इसी बात को सूत्रकार दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं (अहे पलियंकसंठिए) विस्तृत होने के कारण इसका आकार नीचे के
भाग में पलंग के जैसा हो गया है (मज्झे वरवइरविग्गहिए) मध्य में । कृश होने के कारण इसका आकार मध्यभाग में उत्तम वज्र जैसा हो
गया है (उप्पि उद्धमुइंगागारसंठिए) ऊपर में इसका आकार सूधे मुंह रखे हुए मृदंग के जैसा हो गया है। तिरछे मुँह रखे गये मृदंग के जैसा नहीं। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार दो शरावों के नीचे के भाग को आपस में मिला देने पर आकार बन जाता है उसी प्रकार से इस लोक का आकार है । क्यों कि शरावसंपुट का इस स्थिति आकार नीचे के भाग में विस्तृत, मध्यभाग में संकिर्ण और ऊपर के भाग में विस्तीर्ण होता है। (तसिच णं सासयंसि लोगंसि अणादियंसि अणवતેને વિસ્તાર એક રાજ પ્રમાણુ હવાથી વચ્ચેથી તે સંકીર્ણ છે, તેને ઉપરને ભાગ વિશાળ છે કારણ કે બ્રહ્મલેકને વિસ્તાર પાંચ રાજને છે. એજ पातन सूत्रधार टांयी समलव छ-(अहे पलियंकसठिए) विस्तृत डावाने दीधे नीयथा तना मार मना रवा छे, (मज्झे वरवइरविगाहिए) मध्यमां સંકીર્ણ (સાંકડ ) હોવાથી તેના મધ્ય ભાગને આકાર ઉત્તમ વજાના જે छ, ( उपि उद्धमुइंगागारसंठिए) तना पन मागन। माअ२ રહેલા ઢેલના જે છે, તિરછા મેઢે પડેલા હેલ જે તે આકાર નથી.
કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે બે શકેરાના નીચેના ભાગને એક બીજા સાથે જોડી દેવાથી જે આકાર બને છે, એ જ આ લેકને આકાર છે. આ પ્રમાણે જે શરાવસંપુટ ( બે શકેરાંને સમૂહ) બને છે તેને નીચે ભાગ વિસ્તૃત, મધ્ય ભાગ સંકીર્ણ અને ઉપરને ભાગ વિસ્તૃત હોય છે,