________________
भंगवतीसूत्र ६०८ यावत् --- आवलिका इति वा, इयं आवलिका, इत्येवं रूपेण अवसर्पिणी इति वा इयम् अवसर्पिणी इत्येवं रूपेण, उत्सर्पिणी इति वा, इयम् उत्सर्पिणी इत्येवं रूपेण मनुष्यलोकरिथतमनुष्यविज्ञायते किम् ? भगवानाह - 'हता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् , अस्ति संभवति यत् -- मनुष्यलोकस्थितैः मनुप्यैः समयादिकं विज्ञायते ! गौतमः पृच्छति-' से केणोण ?' हे भदन्त ! वत् केनार्थेन कथं तावत् मनुष्यैः समयादिकं विज्ञायते ? भगवानाह-गोयमा! इह तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, एवं पन्नायए' हे गौतम ! इह मनुग्यक्षेत्रे तेपां समयादीनां मान परिमाणम् वर्तते, एवम् इह मनुष्यलोके तेषां समयादीनां प्रमाण प्रकृष्टयानं मूक्ष्मपानमित्यर्थः विद्यते अत एवम् वक्ष्यमाणरीत्या प्रज्ञायते विज्ञायते मनुष्यैः यत्-'त जहा-समया इवा, जाव-उस्तप्पिणी इ वा, तद्यथा-समया मनुष्य क्या यह समय पदार्थ है, यह आपलिका है, यह अवसर्पिणीकाल है, यह उत्सर्पिणीकाल है इस रूपसे इस लमयादिकों को जानते हैं ? इसके उत्तर में प्रमु गौतम से कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (हंता अत्थि) हां, वे इस बात को जानते हैं कि ये लमयादिक पदार्थ हैं। गौतम स्वामी पुनः प्रभु से प्रश्न करते हैं-(से केगडेणं ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि मनुष्य समयादिकों को जानते हैं? तब इसके उत्तर में प्रभु उन्हें कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम (इह तेलि माण, इह तेलि पमाणं, एवं पन्नाथए ) इस मनुष्यलोक में उन लमयादिकों का मान प्रमाण है, इस अनुष्यलोक में उन समयादिकों का प्रमाण-सूक्ष्ममान है इस कारण बलुष्य इस रूप से जानते हैं कि-(तं जहा) जैसे (लमया वा) यह समय है, (जाय उस्सप्पिणी समय छ, " " जाव उस्सप्पिणीइ वा १" ( यावत) " उत्सqिgी आण छ ?" એટલે કે મનુષ્યલકમાં રહેલાં મનુષ્ય શું સમય, આવલિકા, અવસર્પિણી કાળ આદિ કાળદ્રવ્યને જાણી શકવાને શું સમર્થ હોય છે?
उत्तर--"ता अस्थि " , गौतम! तय समयाहि हाथ न. नयी શકવાને શક્તિમાન હોય છે.
गौतम स्वामी ते १२ एवान भाटे पूछे छे । “से केणठेणं" ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે મનુષ્ય સમયાદિકને જાણી શકે છે?
उत्तर-“ गोयमा ! " गौतम ! ( इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं, एवं पनायए) मा मनुष्यभ ते समयानुं भान (प्रभार) डाय छ, આ મનુષ્યલોકમાં તે સમયાદિનું પ્રમાણ (સૂક્ષમમાની હોય છે. તે કારણે मनुष्य ate श छ “ समवाइ वा” मा समय छ, “ जाव उस्खप्पि.