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भगवती सूत्रे
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सहस्र-पूर्वाङ्ग - पूर्व- त्रुटिताङ्ग - त्रुटिता- टटाङ्गा- टटा-ववाङ्गा वत्र हुहुकाङ्ग - हुहुकोत्पलाङ्गी - त्पल - पद्माङ्ग - पद्म नलिनाङ्ग - नलिना- निपुराङ्गा - निपुरा- युवाङ्ग - युत - नयुतोङ्ग - नयुत प्रयुताङ्ग-प्रयुत-चूलिकाङ्ग - चूलिका शोर्षमहे लिकाङ्ग-शीर्षप्रहेलिका- पल्योपम - सागरोपमपर्यन्तं संग्राह्यम् भगवान् आह'णो इणट्टे समड़े ' हे गौतम । नायमर्थः समर्थः, नैरयिका निरयवासिनः समयादिक विज्ञातु नाईन्ति - इत्याशयः, गौतमः पृच्छति' से केणणं जाव- समया इवा, आलिया इवा. ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन यावत्- निरयस्थितैः नैरयिकैः समया इति वा, ' अयं समयपदार्थ : ' इत्येवंऋतु - अधन-संवत्सर - युग- वर्ष शत - वर्षसहस्र- पूर्वाङ्ग-पूर्व- त्रुटिताङ्गत्रुटित - अटटाङ्ग - अटट- अववाङ्ग-अवव-हुहुकाङ्ग - हुहुक - उत्पलाङ्क - उत्प - पद्माङ्ग-पद्म- नलिनाङ्ग नलिन अर्थनिपुराङ्ग- अर्थनिपुर-अयुताङ्ग-अ. युत - नयुताङ्ग - नयुत, प्रयुताङ्ग - प्रयुन चलिकाङ्ग - चूलिका शीर्षप्रहेलिकाङ्गशीषप्रहेलिका- पल्योपम - सागरोपम ) इन सब का ग्रहण हुआ है । इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि - ( णो इणट्टे समठ्ठे ) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है क्यों कि निरयनिवासी नारक समय आदि को जानने के लिये किसी तरह जानने में समर्थ नहीं हैं। गौतम प्रभु के मुख से इस बात को सुनकर पुनः पूछते है कि ( से केणट्टेणं जाव समयाइ वा, आवलियाइ वा, ओसप्पिणीह वा, उस्सप्पिणीइ वा ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वर्तमान में नारक
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अहीं ' जाव' ( यावत् ) पहथी मानप्राय स्तो, सव, भुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, भास, ऋतु भयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्ष सहस, पूर्वाग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, भटटांग, मटटं, अववांग, भावव, हुहुग, डुडु, उत्यसांड, उत्पस, पद्माङ्ग, पद्म, नसिनांग, नसिन, अर्थनियुरांग, अर्थनिपुर, मयुतांग, मयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, यूसिडांग, यूसिभ, शीर्ष अडेसिअंग, शीर्ष अडेविअ, यहयोयम, सागरोपम " या पहोने ग्रहयु કરવામાં આવ્યાં છે.
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या प्रश्नने। भवाम भापता महावीर अनु छे - " णो इट्टे समट्टे " હે ગૌતમ ! એવું ખની શકતું નથી, કારણ કે નરક ગતિમાં રહેલા નારક જીવા સમય આદિને જાણવાને કાઇ પણ રીતે સમથ નથી.
મહાવીર પ્રભુને આ પ્રકારના જવાબ સાંભળીને ગૌતમ સ્વામી તેનું और लघुवाना उद्देशथी या प्रमाणे प्रश्न पूछे छे - ( से केणट्टेणं जाव समयाइवा, आवलियाइ वा, ओसप्पिणीइ वा, उस्सप्पिणीइ वा १ ) डे लहन्त ! साथ શા કારણે એવું કહેા છે કે નરક ગતિમાં રહેલાં નારક જીવા સમય, આવ