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चन्द्रिका टी०० ५५०१ सू०३ नैरयिकादीनां समयादिज्ञाननिरूपणम् ७०३
इवा आवलिया इवा जावओसपिणी इवा, उस्सप्पिणी इ वा ?" तद्यथा - समया इति बा, इमे समयपदार्थाः इत्येवं विशिष्य नैरयिकै ज्ञायते किम् ? एवम् आवलिका प्रकर्षेण ज्ञायते किम् ? तथा यावत् - इयम् अवसर्पिणी प्रज्ञायते ? एवम् इयम् उत्सपिंणी निरयवासिभिः किम् प्रज्ञापते ? इति प्रश्नाशयः, यावत्करणात् - आनप्राणस्तोक - लब- मुहूर्ताऽहोरात्र - पक्ष - मास - ऋश्वयन - संवत्सर - युग-वर्षशत- वर्ष
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प्रभु से ऐसा पूछा है कि - ( अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाण एवं पन्ना ) हे भदन्त ! क्या बात संभवित हो सकती है कि नारक जीवों द्वारा जो कि नरक स्थान में विद्यमान हैं यहां जाना जा सके कि यह (समयाइ वा, आवलियाइ वा : जाव ओसप्पिणीह वा उस्सप्पिणीह वा) समय है यह असंख्यात समयसाध्य आवलिका है, यावत् यह १० कोडी कोडी सागरप्रमाण अवसर्पिणीकाल है, यह दश कोडाकोडी सागरप्रमाण उत्सर्पिणीकाल हैं । तात्पर्य इस सूत्र का यह है कि ( ये समय पदार्थ हैं ) इस रूप से विशेषित होकर क्या नारक जीवों द्वारा समय जाने जाते हैं ? " यह आवलिका है " इस रूप विशेषित होकर क्या आवलिका नारक जीवों द्वारा जानी जाती है ? " यह अवसर्पिणीकाल है " इस रूप से विशेषित होकर क्या अवसर्पिणीकाल नारक जीवों द्वारा जाना जाता है ? " यह उत्सर्पिणीकाल है " इस रूप से विशेषित होकर क्या उत्सर्पिणीकाल नारक जीवों द्वारा जाना जाता यहां यावत्पद्द से (आनप्राण- स्तोक-लव- मुहूर्त्त - अहोरात्र - पक्ष-मास
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अनुनेोवो अश्न पूछे छे ! ( अस्थिणं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पन्नायए) હે ભદન્ત ! શું એ વાત સભવિત છે કે નરકગતિમાં રહેલાં નારક જીવો દ્વારા એ જાણી શકાય છે કે समयाइ वा, आवलियाइ वा, जाव ओखप्पिणीइ वा उस्सप्पिणीइ वा १ ) मा समय छे, या असंख्यात सभयोथी भनेसी भावલિકા છે, (યાવત) આ દસ કાડાકાડી સાગર પ્રમાણ અવસર્પિણી કાળ છે, આ દેસ કાડાકોડી સાગર પ્રમાણુ ઉત્સર્પિણી કાળ છે? આ પ્રશ્નનું તાત્પય નીચે પ્રમાણે છે-શું નારક જીવોને કાળના જુદા જુદા વિભાગાનું જ્ઞાન હાય આ સમય પદાર્થ છે” આ પ્રમાણે સમજીને શું નારકા દ્વારા સમચને જાણવામાં આવે છે ? " આ આલિકા છે, ” એવું જ્ઞાન નારકને હોય છે ખરૂં? या अवसर्पिणी आज छे, या उत्सर्पिल आज छे, " એવુ સમજવાનું જ્ઞાન થું નાકાને હાય છે ખરૢ ?
छे ? "
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