________________
६४२
भगवतीने एवं दशविधा अपि । एकेन्द्रिया वर्धन्तेऽपि, हीयन्तेऽपि अवस्थिता अपि, एतेषु त्रिवपि जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षेण आवलिकाया असंख्येयभागम् । द्वीन्द्रिया वर्धन्ते हीयन्ते तथैव, अवस्थिता जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण द्वौ अन्तर्मुहूर्ती ,एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाः । अवशेषाः सर्वे वर्धन्ते, हीयन्ते, तथैव । जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोलंणं अट्ठ चत्तालीसं मुहुत्ता एवं दसविहा वि) जिस तरह से नारकों के विषय में कथन किया गया है-उसी प्रकार से असुर कुमारों के विषय में भी वृद्धि और हास कहदेना चाहिये जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से अडतालीस मुहूर्त तक वे अवस्थित रहते हैं । इसी प्रकार से दस भवनपतियों के विषय में भी जानना चाहिये । ( एगिदिया वति वि, हायति वि, अवडिया वि, एएहिं तिहिं वि जहण्णेणं एक्कं समयं आलियाए असंखेज्जइभाग) एकेन्द्रिय जीव बढते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं । वृद्धि, हानि और यथावस्थित इन तीनों में जघन्य एक समय, और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवां भाग जितना काल है । ( बेइदिया-तिदिया वति, हायंति, तहेव अवष्टिया जहण्णे णं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता, एवं जाव चरिंदिया) दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय जीव उसी तरह से बढते हैं और घटते हैं । इनका अवस्थान जघन्य से एक समय तक का और उत्कृष्ट से दो अन्तर्मुहर्त तक का है। इसी तरह से यावत् चौइन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । (अवसेसा सव्वे वढंति, सेणं अट्ठचत्तालीस मुहुत्ता एवं दसविहावि) असुमारे। माछामा माछा ४ સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે ૪૮ મુહૂર્તી સુધી અવસ્થિત રહે છે એજ પ્રમાણે દસે ભવનપતિઓ વિષે સમજવું.
(एगिदिया वड्ढति वि, हायंतिवि अवट्रिया वि, एए हि तिहिं वि जहण्णेणं एक समय, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भाग) सन्द्रिय व वधे छ पY ખરાં, ઘટે છે પણ ખરાં અને અવસ્થિત પણ રહે છે. તેમને વૃદ્ધિ, હાનિ (હાસ) અને અવસ્થાન કાળ, ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં पधारे मातिाना असण्यातमा लामाले ( वेईदिया-तिदिया-वड्ढति, हायति, तहेत्र अवद्विया, जहण्णण एक समय, उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता, एवं चउर दिया ) दीन्द्रय भने त्रीन्द्रिय ७ ५५५ मे प्रमाणे वधे छ भने ઘટે છે અને તેમને અવસ્થાન કાળ ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં વધારે બે અન્તર્યુ સુધીને કહ્યો છે. એ જ પ્રમાણે ચતુરિન્દ્રિય પર્યન્તના જી વિષે સમજવું