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___ भवगतीने पहाः, नो अनारम्भाः, नो वा अपरिग्रहाः, तत् केनार्थेन० १ गौतम । द्वीन्द्रियाः पृथिवीकार्य समारभन्ते, यावत्-त्रसकायं समारभन्ते ' इति संग्राह्यम् 'बाहिरिया भंड-मत्तो-वगरणा परिग्गहिया भवंति' वाह्यानि भाण्डा-ऽमत्रो-पकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति, मनुष्यरचित गृहादीनि यथा मनुष्यरक्षकतया तदुपकरणानि उज्यन्ते तथा द्वीन्द्रियनिर्मितान्यपिगृहाणि शरीररक्षकतया तदुपकरणानि उच्यन्ते एवं जाव-चउरिदिया ' एवं द्वीन्द्रियवत् यावत्-चतुरिन्द्रियाः जीवाः सारम्भाः, सपरिग्रहाः, नो अनारम्भाः, नो अपरिग्रहा भवन्तीत्याशयः, यावत्करणात् त्रीन्द्रियाः संग्राह्यः । गौतमः पृच्छति-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते !' हे भदन्त ! पञ्चेन्द्रियविर्यग्योनिकाः खलु पशुपक्ष्यादयः किम् सारम्भाः, सपरिग्रहाः ?
मण इन तीन शरीरवाले होते हैं । ये पृथिवीकायसंबंधी आरंभ करते हैं, यावत्-त्रसकाय संबंधी आरंभ करते हैं । (वाहिरिया भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति) जिस प्रकार मनुष्यों द्वारा बनाये गये गृहादिक उ. नके रक्षक होने के कारण उनके उपकरणरूप कहे जाते हैं, उसी तरह द्वीन्द्रिय जीवों द्वारा निर्मित भी गृहादिक उनके शरीर के रक्षक होने के कारण उनके भी उपकरणों में गिने जाते हैं । ( एवं जाव चारिदिया) बीन्द्रिय जीवों की तरह यावत् चौहन्द्रिय जीव आरंभ सहित और परिग्रह सहित होते हैं-इनसे रहित नहीं होते हैं। यहां यावत् शब्द से दो इन्द्रिय और चो-इन्द्रियके बीच आये हुए तेइन्द्रिय जीवोंका ग्रहण हुआ है।
अब गौतमस्वामी प्रसु ले ऐसा पूछ रहे हैं कि (पंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं अंते!) हे भदन्त ! जो पंचेन्द्रियतियश्चयानि के जीव पशु.
यथा सय पन्तन मा ४रे छ. (बाहिरिया भडमत्तोवगरणा परिगहिया भवति) वी ते मनुष्य वडे मनापायेai घर भाहिन तेमना आश्रयસ્થાનેરૂપ માનીને તેમનાં ઉપકરણરૂપ ગણવામાં આવે છે, એજ રીતે બ્રિન્દ્રિય છ વડે બનાવાયેલાં ઘર આદિને પણ તેમના રક્ષક હેવાને કારણે તેમના ७५४२४३५ गापामा मावे छ. (एवं जाव चरिंदिया) यतुरिन्द्रिय ७वाने , પણ હીન્દ્રિય જીની જેમજ આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત છે. અહીં ' यावत् ' ५४था तेन्द्रिय लवाने पड ४२वामां माया छे.
હવે ગૌતમ સ્વામી પંચેન્દ્રિય તિર્ધાના વિષયમાં પ્રશ્ન પૂછે છે– (पबिलियतिरिक्सानोणियाणं भंते !) साहित! पन्द्रिय लिय"