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जोगिणीओ परिग्गहिया भवंति ' देवाः, देव्यः, मनुष्याः, मनुष्यः, तिर्यगूयोनिकाः, तिर्यग्योनयः - तिरश्च्यः परिगृहीताः भवन्ति, 'आसण-सयणभंड- मत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति ' आसन - शयन - भाण्डा - मंत्रोपकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति, तत्र भाण्डानि रत्नमयानि, अमत्राणि सुवर्णमयाानिं, उपकरणानि विमानभूषणप्रभृतीनि ग्राह्यानि, 'सचित्ता-चित्त- मीसियाई दन्त्राई परिग्गहियाई भवंति' सचित्तानि देवादीनि, अचित्तानि कटककुण्डलादीनि, मिश्रि: तानि सचित्ताऽचित्तयुक्तानि अलङ्कारसहितदेवादीनि द्रव्याणि परिगृहीतानि भवन्ति, तदुपसंदरति--' से तेणद्वेणं तदेव ' तत् तेनार्थेन तथैव असुरकुमाराः सारम्भाः, सपरिग्रहाश्चैव भवन्ति, नो अनारम्भाः, अपरिग्रहा वा भवन्ति एवं जाव - धणियकुमारा ' एवं तथैव अमुरकुमारवदेव यावत् स्तनितकुमाराः अपि गहिया भवंति ) देव, देवीयां, मनुष्य, मनुष्यणियां, तिर्यग्योनिकजीव, तिर्यंचनियां, परिगृहीत होती हैं। (आसण-सयणभंड- मत्तो वगरणा परिग्गहिया भवंति ) आसन, शयन, भाण्ड - रत्नमयपात्र, अमत्र - सुबर्णमयपात्र, उपकरण- विमान भूषण आदि परिगृहीत होते हैं । (सचिप्ाचित्त मीसियाई दब्वाइं परिग्गहियाइं भवंति ) सचित्त - देव आदि अचित्त - कनककुण्डल आदि, मिश्रित सचित्ताचित्त अलंकार सहित दे वादिक ये सब द्रव्य परिग्रहीत होते हैं । ( से तेणट्टेणं हेच ) इस कांरण हे गौतम! मैंने पूर्वोक्तरूप से ऐसा कहा है कि असुरकुमारदेव आ रंभ और परिग्रह से युक्त रहा करते हैं ये अनारंभी अपरिग्रही नहीं होते हैं । ( एवं जाव धणियकुमारा) असुरकुमारदेवों की तरह नागकुंमार से लेकर स्तनितकुमारों को भी सारंभ सपरिग्रह जानना चाहिये ।
परिरंगहिया भवति ) तेथे देव, देवीच्या, भाणुसो, स्त्रीमा, तिर्यथ यमिनां ♚थे। भने तिर्थ यणीयमा परिभंड उरता होय छे. (आसण, सयण, भंडsadaiरणा परिगद्दिया भवति ) तेथे शासन, शय्या, लांड ( रत्नभय पात्र )
भन्नं (सुवणु'भय यात्र), उपअर ( विमान, आभूषण वगेरें) वगेरे स्तु मोमो चरित्र उरे छे, ( सचित्ताचित्तमीसियाई दवाई परिगहियाई भवति ) દેવ આદિ સચિત્ત, કનકકુલ આદિ અચિત્ત અને અલંકાર ધારણ કરેલા દેવા माहि भिश्र ( सयित्तायित्त ) द्रव्योन। परिग्रह अरे छे. ( से वेणद्वेणं तदेव ) હે ગૌતમ ! તે કારણે અસુરકુમાર દેવે આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત ડાય छे, तेथेो मनारली भने अपरिग्रही होता नथी ( एवं जाव थणियकुमास ) નાગકુમાર દેવાથી લઈને સ્તનિતકુમાર પર્યન્તના દેવને પણ અસુરકુમાસની प्रेसनं मारल भने परिषड्थी युक्त समन्न्वा मर्डी “ 'जावृ " ( पर्यन्त )