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प्रभैयश्चन्द्रिका टी०शं०५४०७०७ - नैरयिकानां सारंभानाभादि निरूपणम् १५७ णं पुढविकार्यं समारंभंति ' हे गौतम ! असुरकुमाराः खलु पृथिवीकायं समारभन्ते आरम्भविषयं कुर्वन्ति, "जाव - तसकार्य समारंभंति ' यावत् त्रसकायं सभारभन्ते, यावत्करणात् अकायं, तेजस्कायं, 'वायुकायम् वनस्पतिकायम्' इत्यादि संग्राह्यम्, सरीरा परिग्गहिया भवंति ' तैरसुरकुमारैः शरीराणि परिगृहीतानि परिग्रहविषयीकृतानि भवन्ति, 'कम्मा परिग्गहिया भवंति ' कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, ' भवणा परिग्गहिया भवंति ' भवनानि परिगृहीतानि भवन्ति, 'देवा, देवीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्ख
असुरकुमार आरंभ सौर परिग्रह सहित ही होते हैं, आरंभ परिग्रह से रहित नहीं होते हैं ! इसका समाधान करते हुए प्रभु कहते हैं (गोयमा) हे गौतम! (असुरकुमाराणं पुढविकार्य समारंभंति, जाव तसकायं समारंभंति ) असुरकुमार देव पृथिवीकाय विषयक आरंभ करते हैं यावत् सकायविषयक आरंभ करते हैं। यहां यावत्पद से " अप्रका तेजस्कायं, वायुकार्य, वनस्पतिकार्य " इत्यादि पाठका संग्रह हुआ है । ( सरीरा परिग्गहिया भवंति ) उन असुर कुमारों द्वारा शरीर - तैजसकार्मण एवं वैक्रियशरीर परिगृहीत- परिग्रह के विषयभूत किये हुए होते हैं, अर्थात् इन तीन शरीरों को ये धारण किये रहते हैं । (कम्मा परिगहिया भवंति ) कर्म परिगृहीत होते हैं, ज्ञानावरण आदि कर्मों से ये युक्त होते हैं । (भवणा परिग्गहिया भवंति भवन परिगृहीत होते हैं । (देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिय, तिरिक्खजोगिणीओ परि
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આરભ અને પરિગ્રહથી ચુક્ત હાય છે, આરભ અને પરિગ્રહથી રહિત હાતા नथी ? प्रश्ननुं समाधान उश्ता भडावीर अलु हे छे-" गोचमा ! " हे गौतम! ( असुरकुमाराणं पुढविकार्यं समारंभति, जाव तसकार्य समारंभ ति ) असुरकुभार દેવા પૃથ્વીકાયના આરણ કરે છે અને ત્રસકાય પર્યન્તના જીવાને આરભ हरे छे. अहीं " जाव " ( पर्यन्त ) पहथी "अयूडाय, तेन्ससाय, वायुभय, વનસ્પતિકાય ” વગેરે પદાના સગ્રહ કરવામાં આન્યા તેથી છ કાયના આર’ભ ४श्वाषाणा उडेवाय छे. ( सरीरा परिग्गहिया भवति ) असुरकुमारी वडे शरी રના-તેજસ, કાČણુ અને નૈષ્ક્રિય શરીરના પરિગ્રહ કરાય છે. એટલે કે તે ये त्रये शरीराने धारण ४रता होय छे. ( कम्मा परिग्गहिया भवति ) तेभना વડે ક્રમ પરિગૃહીત થયેલાં હોય છે—જ્ઞાનાવરણુદ્ધિ કમેાંથી તે युक्त होय छे. ( भवणो परिग्गहिया भवंति ) लवना परीगृहीत होय छे. (देवा, देवीओ, मणुस्खा, मणुस्सीभो, तिरक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिजी भो