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'प्रमेयचन्द्रिका शे००५ ३०७८०७ नैयरिकादीनां सारंभानारंमादिनिरूपणम् ५५३
भवन्ति, तत् तेनार्थेन० । यथा तिर्यग्योनिकास्तथा मनुष्या अपि भणितव्याः । वानव्यन्तर - ज्योतिष्क- वैमानिका यथा भवनवासिनस्तथा नेतव्याः || सू० ७॥ . टीका - पूर्वम् आयुर्निरूपितम् अथायुष्मतः नारकादिप्राणिनः आरम्भादिना चतुर्विंशतिदण्डकेन निरूपयन्नाह - ' नेरइयाणं भंते ' इत्यादि ।' नेरइया-णं भंते । किं सारंभा, सपरिग्गहा, उदोहु अणारंभा, अपरिग्गदा ? ' गौतमः पृच्छति
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अचित्त और मिश्र ये सब द्रव्य इनके द्वारा परिगृहीत होते हैं । ( से णणं) इस कारण हे गौतम । मैं ने ऐसा कहा है कि तियैच-पंचेन्द्रिय तिर्यच - आरंभी और परिग्रही है । (जहा तिरिक्खजोणीया तहा मनुसा वि भाणियन्त्रा) जिस प्रकार से यह तिर्यश्चों को- पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों को आरंभी ओर परिग्रही प्रकट करनेके लिये विषय चर्चित किया गया . है - उसी प्रकार से मनुष्यों को भी परिग्रही और आरंभी प्रकट करने के -लिये यही विषय चर्चित कर लेना चाहिये । ( चाणमंतर जोइसवेमाणिया जहा भवणवासी तहा नेयव्वा) वाणमंतर, ज्यातिषिक ओर वैमानिक इनको आरंभी और परिग्रही भवनवासी देवों की तरह से जोनना चाहिये । टीकार्थ- पहिले आयु का निरूपण किया है- अब आयुष्मान जो नारक आदि प्रश्नों को लेकर चौवीसदण्डकद्वारा निरूपण सूत्रकार कर रहे हैं - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-' णेरइयाणं भंते । किं सारंभा सपरिग्गहा, उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा' हे भदन्त | जो नारक
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वगेरे तेभना वडे परिगृहीत उराय छे. ( से तेणट्ठेणं) हे गौतम । ते भरथे भें मेषु॑ ऽधुं छे } यथेन्द्रिय तिर्यय आरंभ भने परिश्रवाणां छे. ( - जहा तिरिक्खजोणिया तहा मनुस्सा वि भाणियव्या ) पंचेन्द्रिय तिर्ययाने भारल અને પરિથઢવાળા સાબિત કરવા માટે જે વાત એજ વાત મનુષ્યેાને આર્ભ અને પરિગ્રહવાળા
ઉપર કહેવામાં આવી છે, સાબિત કરવા માટે કહેવી
(बाणमंतर जोइस वैमाणिया जहा भवणवासी तहो नेयव्वा) वायुभीतर, ન્યાતિષિક અને વૈમાનિકાને ભવનવાસી દેવાની જેમજ આરભ અને પરિ ગ્રહથી યુક્ત સમજવા.
ટીકાથ—આ પહેલાંના પ્રકરણમાં આયુનું નિરૂપણ કરાયું છે. હવે સૂત્રકાર નારકાદિ આયુષ્યમાન જીવેાના આરંભ આદિ વિષયના પ્રશ્નો પૂછીને ચાવીસ દંડકાને અનુલક્ષીને આ પ્રકારનું નિરૂપણુ કરવામાં આવ્યું છે, ગૌતમ સ્વામી भहावीर अभुने सेवा प्रश्न पूछे छे के ( णेरइयाणं भंते ! किं सारंभा सपरिहा उदाहु अणाना अपरिभाषा ) हे महन्त | नारी पाएक
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