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________________ भगवती ४० दिवसो भवति ' तयाणं ' तदा खलु 'पञ्चत्थिमे णं' पश्चिमे खलु दिग्भागेऽपि अटारसमुहत्ताणतरे ' अष्टादश मुहूर्तानन्तरो 'दिवसे भवई' दिवसो भवति, अथ च 'जयाणं ' यदा खलु 'पच्चस्थिमेणं' पश्चिमे तदा खलु 'अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे' अष्टादशमुहूर्तानन्तरो 'दिवसे भवइ' दिवसो भवति 'तया ण तदा खलु 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स' मन्दरस्य 'पन्चयस्स 'पर्वतस्य 'उत्तरदाहिणे' उत्तर-दक्षिणे :साइरेगदुवालसमुहुत्ता ' सातिरेकद्वादशमुहूर्ता द्वादशमुहूर्ता किंचिदधिका ‘राई भवइ ? ' रात्रिर्भवति किम् ? ___भगवानाह–'हंता, गोयमा ! जाव-भवइ' हे गौतम ! हन्त, सत्यं यावत् भवति, अयमाशयः - यदा सूर्यः सर्वाभ्यन्तरत्र्यशीत्यधिकशततममण्डलाव्यव. हितसमीपवर्तिनि द्वयशीत्यधिकशततमे १८२ मण्डले सञ्चरति तदा मुहूर्तस्यैकण) तब (पञ्चत्थिमे) पश्चिम दिग्भाग में भी (अट्ठारसमुहत्ताणतरे दि. वसे भवइ) कुछ कम अठारह मुहूर्त का दिवस होता है । ( तया णं) तब (पञ्चत्थिमेणं) पश्चिमदिग्भाग में भी (अट्ठारसमुहत्ताणंतरे ) अष्टादशमुहर्त्तानन्तर (दिवसे भवइ) दिवस होता है। और (जयाणं) जष (पच्चत्थिमेणं) पश्चिम में (अट्ठारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ) कुछ कम अठारह मुहर्त का दिवस होता है (तयाणं) तष (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामके द्वीप में (मंदरस्स पव्वयस्स) मन्दर पर्वत के (उत्तर दाहिणे) उत्तर दक्षिण में (साइरेगदुवालसमुहत्ता) कुछ अधिक घारह मुहूत्त की (राई भवइ) रात्रि होती है क्या ? प्रभु इतका उत्तर देतेहुए कहते हैं कि (हंता गोयमा ! जाव भवड) हां गौतम ! ऐसा ही हता है। इसका आशय यह है जिस समय सूर्य १८३ एकसो तीरासी वे सर्वाभ्यन्तर मण्डल से निकलकर उसके पास रहे हए १८२ एकसो बयासी " तया ण" त्यारे " पच्चस्थिमेण" पश्चिम HिITRi Y शु. "अट्ठारस मुहत्ताण'तरे दिवसे भवह " सदार भुइतथी सडर न्यून प्रभावाणी हवस थाय छ १ " तयाण" मारीत न्यारे पूर्व मन पश्चिम हिमालमा मदार भूडूत ४२di साडे माछ। प्रभाष वाणे विस थाय छ, त्यारे "जबू हीवे दीवे " पूदीय नाम द्वीपमा “मदरस्स पव्वयस्स" म२ ५ तना " उत्तरदाहिणे " उत्तर भने दक्षिामा " साइरेगा दुवाळसमुहत्ता राई भवइ ?" शुमार मुश्त ४२di ५५ साडेर अघि प्रमाण वाणी निथायछे. उत्तर-“हता, गोयमा! जाव भव" हो, गौतम! स આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-જ્યારે સૂર્ય ૧૮૩ એકસે ત્યાસીમાં पन छ. સભ્યન્તર મંડળમાંથી નીકળીને તેની પાસે રહેલા ૧૮૨ એક બાસીમાં મંડળ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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