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________________ shearer टीका २०५ ३० १ सू० २ रात्रिदिवस स्वरूपनिरूपणम् ३९ " “ , भगवानाह हंता, गोयमा ! ' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् ' जयाणं जंबू ' दारुल जम्बू० इत्यादि 'जाद - राई भवई' यावत्-रात्रिर्भवति । यावत्वरणात्जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्षे अहादर मुनिन्तरो दिवसो भवति तदा खलु उत्तरेऽपि अष्टादरुहूतनिग्रो दिवसो भवति, यदा च उत्तरार्धे अष्टादश्रुहूतनिःतरो दिवसो भवति तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतश्य पौरस्त्ये पश्चिमे च सातिरेका द्वादशमुहूर्ता इति संग्रहम् । गौतमः पुनः पृच्छति - जया णं भंते !" इत्यादि । हे भदन्त । यदा खलु 'जंबुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे ' मंदरस्स ' मन्दरस्य ' पव्वयस्स पर्वतस्य 'पुरस्थिमे णं पौत्ये खल पूर्वभागे अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे' अष्टादशसुहूर्तानन्तरोऽष्टादशाहृर्तप्रमाणो 'दिवसे भवइ ' लसमुहुत्ता) बारह मुहूर्त्त की ( राई भवइ ) रात्रि होती है क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( हंता गोयमा ) हां गौतम ! ऐसी ही बात है । (जया णं जंबु जाव राई भवइ) जब जंबूद्वीप नामके द्वीप में यावत् शब्द से गृहीत दक्षिणार्ध में अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम दिवस होता है, उस समय उत्तर में भी अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम दिवस होता है और जब उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम दिवस होता है, उस समय जंबूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत के पौरस्त्य पश्चिम भाग में कुछ अधिक बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है । अब इसी बात को दूसरी तरह से प्रभु से गौतम पूछते हैं - ( जथा णं भंते!) हे भदन्त ! जब ( जबुद्दीवे दीवे) जंबूद्वीप नामके द्वीप में (मंदरपव्वयस्स पुरत्थिमेणं) मंदर पर्वत के पूर्वभाग में (अट्ठार समुहुत्ताणंतरे) अठारह मुहूर्त्त से कुछ कम ( दिवसे भवइ ) दिवस होता है (तया समुहुत्ता राई भवइ ? " १८२मढार भुहूर्त भने ४यार भजनी रात्रि थाय छे? उत्तर- " हृता गोयमा ! " डा, गौतम ! मेवु मने छे. "लयाण जंबू' ara राई भवइ " न्यारे में भूद्वीपमा १८ मदार भुहूर्त' ४२ती ४ यार जे પળ ન્યન સમયને દિવસ થાય છે, ત્યારે ઉત્તરમાં પણ એટલા જ લાંખા દિવસ થાય છે. અને જ્યારે ઉત્તરમાં ૧૮ અઢાર મુહૂર્તથી ૪ ચાર પળ ન્યૂન સમયના દિવસ થાય છે, ત્યારે જ મૂઠ્ઠીપમાં મંદર પર્વતના પૂર્વ અને પશ્ચિમ દિશાગામાં ૨૨ ખાર મુહૂર્ત અને ૪ ચાર પળની રાત્રિ થાય છે. हवे गौतम स्वाभी से बात भी रीते महावीर अलुने पूछे थे- 'जयाण मंसे 1 " से महन्त ! न्यारे ( जबूदीवे दीवे ) ०४ यूद्वीप नाभना द्वीपभां (मंदरपत्रयस्स पुरत्थिमेण ) भडर पर्वतना पूर्व हिग्लाभां ( अट्ठारस मुहुत्ताणं तरे मढार भुहूर्त थी सेहन न्यून प्रभाणुवाजो ( दिवसे भवइ) हिवस थाय छे, '
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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