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अमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०७ सू०७ नैरयिकादीनां सारंभानारमादिनि० ५४.५ से तेणट्रेणं तं चैत्र । असुरकुमारा णं भंते ! किं लारंभा पुच्छा? गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा, सपरिग्गहा, णो अणारंभा, णो अपरिग्गहा । से केणटेणं ? गोयमा! असुरकुमाराणं पुढवीकार्य समारंभंति, जाव-तसकायं समारंभंति,सरोरा परिग्गहियाभवंति, देवादेवीओ, मणुस्सा मणुस्सीओ,तिरिक्खजाणिया तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहिया भवंति,आसणसयण-भंडाऽमत्तोवगरणापरिगहिया भवंति,सच्चित्ता-ऽचित्त-सीलियाई दवाइं परिग्गहियाई भवंति,सेतेणटेणं तहेव । एवं जाव-थणियकुमारा । एगिदिया जहा नेरइया । वेइंदिया णं भंते ! किं लारंभा, सपरिग्गहा ?तं चेव जाव-सरीरापरिग्गहिया भवंति, बाहिरिया भंडमनोवगरणा परिग्ग्रहिया भवंति। सचित्ता-चित्त जावभवंति । एवं जाव-चउरिदिया।पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते !? तं चैव जाव-कम्मा परिग्गहिया भवंति,टंका, कूडा,सेला, सिहरी,पन्भारा,परिग्गहिया भवंति,जल-थल-बिल-गुह-लेणा परिग्गहियाभवंति,उज्झर-निज्झ रचिल्लल्ल-पल्लल-वप्पिणा परिग्गहिया भवंति, अगड-तडाग-दह'नईओ, वावी-पुक्खरिणी, दीहिया, गुंजालिया, सरा, सरपंतियाओ, सरसरपंतियाओ, बिलपंतियाओ परिग्गहियाओ भवंति, आरामु-ज्जाणा, काणणा, वणा, वणसंडा, वणराईओ, परिग्गहियाओ भवंति, देवउलाऽऽसम-पवा-थूभ-खाइय-परिखाओ परिग्गहियाओ भवंति, पागार-अहालग-चरिय-दार-गोपुरा परिग्गहिया भवंति, पासाय-घर-सरण-लेण-आवणा परिग्ग़ाहिया