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प्रमेयचन्द्रिका टी०।०५७०७ १०५ परमाणुपुद्गलादीनां निरूपणम् . ५२१ षण असख्येयकालं तिष्ठति, ' एवं वादरपरिणए पोग्गले ' एवं तथैव चादरपरिप्रातः स्थूलपरिणामी पुद्गलः जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षण असंख्येयं कालं तिष्ठ, ति। गौतमः पुनः पृच्छति-'सहपरिण.एणं भते ! पोग्गले कालो केचिरं होइ ? हे भदन्त । शब्दपरिणतः खलु पुद्गलः कालतः क्रियच्चिरं कियत्काल पर्यन्तं भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं एग समय ' हे गौतम ! शब्दपरिणतः पुद्गलः जघन्येन एक समय तिष्ठति, 'उकोसेणं आलियाए असंखेजइभागं' उत्कपेण आवलिकाया असंख्येयभागं तिष्ठति, 'असहपरिणए जहा-एगगुणकालए' परिणए पोग्गले ) इसी प्रकार से सूक्ष्मरूप में परिणत हुआ पुद्गल जघन्य से एक समयतक और उत्कृष्ट से असंख्यात कालतक रहता है । इसी तरह से (यादरपरिणए पोग्गले ) वादर परिणत स्थूल परिणामी हुए पुद्गल के विषय में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल जोनना चाहिये । अव गौतम प्रभु से यह पूछते हैं कि (सहपरिणएणं भंते ! पोग्गले कालओ केवच्चिरं होह) हे भदन्त । शब्दरूप से परिणत हुआ पुद्गल इसी शब्दरूप परिणति में कितने कालतक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं (गोयमा) हे गौतम । (जहण्णेणं एगं समयं ) शब्दरूप से परिणत हुआ पुद्गल इसी शब्दरूप परिणति में कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक ( आवलियाए असंखेज्जइभाग) आवलिकाके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक रहता है। ( असद्दपरिणए जहा एगगुणकालए ) अशब्दरूप ५ मेम समन. “ एव सुहमपरिणए पोग्गले " मे प्रभारी सूक्ष्मરૂપે પરિણમેલું પુદ્ગલ પણ ઓછામાં ઓછું એક સમય સુધી અને વધારેમાં पधारे मसच्यात सुधी से स्थितिमा २९ छ “ एवं' वादरपरिणए पोगले" मे प्रभारी स्थूस३चे परिणभेद ५ घन्य से समय પર્યત અને અધિકમાં અધિક અસંખ્યાત કાળ પર્યત એજ અવસ્થામાં રહે છે. - गौतम स्वाभाना प्रश्न-“ सहपरिणएणं भंते ! पग्गिले कालओ केवच्चिर होइ ?" महन्त ! २३२ ५२७ मे पुस मे २०६३५ परिणतिभा કેટલા કાળ સુધી રહે છે?
महावीरप्रभुना उत्तर-' गोयमा ! " जहण्णेण एगं समय" उ गौतम ! શબ્દરૂપે પરિણમેલું પુદ્ગલ એ જ શબ્દરૂપ પરિણતિમાં ઓછામાં ઓછા એક समय सुधी मने बारेमा थारे “ आवलियाए असंखेज्जभागं" मालिन असभ्यात मा प्रभाegan सुधी २० छ, “ असहपरिणए जहा एगगुणकालए.'
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