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________________ भगवती Go 3 जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् एवं यावत् - अनन्तगुणकालकः, एवं वर्ण- गन्ध-रस - स्पर्शम्, यावत् - अनन्तगुणरूक्षः, एवं सूक्ष्म परिणत. पुद्गलः, एवं बादरपरिणतः पुद्गलः । शब्दपरिणतः खल भदन्त । पुद्गलः कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण आवलिविषय में भी जानना चाहिये । ( एगगुणकालए णं भंते! पोगले कालओ केवच्चिरं होइ ) हे भदन्त । जिस पुद्गल में कृष्ण गुण एक गुणा रहता है अर्थात् एक गुणित कृष्णगुण रहता है वह पुद्गल काल की अपेक्षा कध तक वैसा ही बना रहना है ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेज्ज - एवं जाव अनंतगुणकालए एवं वण्ण-गंध-रस-फार्स जाव अनंतगुणलुक्खे, एवं सुमपरिणए पोग्गले, एवं बादरपरिणए पोग्गले ) हे भदन्त । जिस पुद्गल में कृष्ण गुण एक गुण रहता है ऐसा वह पुद्गल कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक वैसा का वैसा ही बना रहता है । इसी तरह से यावत् अनंतगुणित कालगुण वाले पुद्गल के विषय में भी जानना चाहिये, इसी तरह से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वा पुद्गल के विषय में यावत् अनन्तगुणे ( रूखा ) रूक्ष गुणवाले पुद्गल के विषय में, सूक्ष्मरूप से परिणत हुए पुल के विषय में और वादरूप से परिणत हुए पुल के विषय में भी जानना चाहिये । ( सद्दपरिणए भोग ओ केवच्चिरं होइ ) हे भदन्त ! शब्दरूप में ( एगगुणकालएण संते! पोग्गले कालओ केवच्चिर होइ ? ) डे लहन्त ! પુદ્ગલમાં કૃષ્ણગુણુના એક જ અ ́શ રહેલા હાય છે, તે પુદ્ગલ કાળની અપેક્ષાએ भेटला समय सुधी मेधुं ०४ रहे थे ? ( गोयमा ! जहणेण एग समय, उक्कोसेणं असंखेज्जकालं - एवं जाव अनंतगुणकालए-एवं- वण्ण-गंध-रस - फास - जाव अतगुण लक्खे, एवं सुहुमपरिणए पोगाले, एवं वादरपरिणए पोगले ) 3 ગૌતમ ! જે પુદ્ગલમાં કાળાશના ગુણુના એક અશ રહેલેા હાય છે, એવું પુદ્ગલ આછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારે ાં વધારે અસખ્યાત કાળ સુધી એવું ને એવું રહે છે. અનંતગણુા પન્તના કૃષ્ણવર્ણવાળા પુદ્ગલના વિષયમાં પણ એ જ પ્રમાણે સમજવું વર્ણ, ગધ, રસ અને સ્પર્શવાળા પુદ્ગલના વિષયમાં પણ એમ જ સમજવું. અન’તગણા પન્તના રૂક્ષ (લૂખાપણુ) ગુણુંવાળા પુદ્ગલના વિષયમાં, સૂક્ષ્મરૂપે પરિણમેલા પુદ્ગલના વિષયમાં અને સ્થૂલ ( માદર ) રૂપે પરિણમેલા પુદ્ગલના વિષયમાં પણ એ જ પ્રમાણે સમorg. ( सहपरिणएणं भते ! पोग्गले कालओ केवच्चिर होइ ? ) डे लडन्त !
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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