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भगवतीसूत्रे तथा च अग्निकायमध्यप्रदेशविपयकात् प्रश्नोत्तरात्मकालापादारभ्भ उदकविन्दु मध्यप्रवेशपर्यन्तविपयकालापके पु स्थूलपरिगामि-अनन्तप्रदेशिकस्कन्धस्य वहनाद्रीभवनप्रतिस्खलनविनाशाः विज्ञेयाः । सूक्ष्मपरिणामिनः तथाविधात्यानन्तप्रदेशिकस्कन्धस्य तु दहनादिविनाशान्तधर्मरहितत्वं विज्ञेयमिति भावः ।। मु० २॥
परमाणुपुद्गलादिविभागवक्तव्यताप्रस्तावः मूलम् " परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि सअड्डे, समझे, सपएसे, उदाहु अणड्डे, अमज्झे, अपएस ? गोयमा! अणड्डे, अमज्झे, अपएसे, णो सुअडे, णो समझे णो सपएसे। दुप्पएलिएणं भंते ! खंधेकि सअड्डे, समज्झे सपएसे, उदाह अणड्डे, अमझे, अपएसे ? गोयमा ! सअड्डे, अमज्झे, सपएमे, णो अणड्डे, णो समझे, णो अपएसे । तिप्पए'सिएणं भंते ! खंधे पुच्छा ? गोयमा ! अणड्डे, समझे,
सपएसे, णो सअड्डे, णो अमझे, णो अपएसे, जहा दुप्पप्रश्नोत्तर संबंधी आलापक पहिले की तरह अपने आप समझलेना चाहिये। यहां पर अग्निकाय के मध्य में प्रवेश विषयक प्रश्नोत्तर रूप आलापक से लेकर उदकविन्दु के बीच में प्रवेश करने तक के आलापकों में स्थूल परिणाम वाले ही अनन्त प्रदेशो स्कन्ध का दहन होना, गीला होना, प्रतिस्खलन होना और विनाश होना सूत्रकार ने कहा है ऐसा जानना चाहिये । सूक्ष्म परिणाम वाले तथाविध अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के नहीं। क्योंकि वह दाहधर्म से लेकर विनाश होने तक के धर्मों से रहित होता है । सू०२॥ પ્રશ્નોત્તરે પહેલાના પ્રશ્નોત્તરે પ્રમાણે જ સમજી લેવા. અહીં અગ્નિકાયની અંદર પ્રવેશ કરવા વિશેના પ્રશ્નોત્તર રૂપ આલાપકોથી લઈને પાણીના બિંદુમાં પ્રવેશ કરવા વિના આલાપમાં સ્થૂલ પરિણામવાળા અનત પ્રદેશી કલ્પના જ દહન થવાની, ભીંજાવાની, પ્રતિખલન થવાની અને નષ્ટ થવાની વાત સૂત્રકારે કહી છે એમ સમજવું. સૂકમ પરિણામવાળા અનંત પ્રદેશી સ્કને આ વાત લાગુ પડતી નથી, કારણ કે તે દહનથી લઈને વિનાશ પર્યન્તના ધર્મોથી २हित डाय छे. ॥ सू. २॥