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"भगवतीसूत्र • अवगाहेत, स खलु मैदन्त । तत्र छिद्येग वा, भिवेत वा ? "गौतम ! -अस्त्येकका छियेत वा, भिद्येत वा, अस्त्येकको नो छियेत बा, 'नो भिद्येत वा, एवम् अग्निकायस्य मध्य मध्येन, तत्र न वरम्-धमायेत-भणितव्यम् , “एवं पुष्करसंवर्तकस्य 'धार के ऊपर ठहर सकता है ? (हंता, ओगाहेज्जा) हां, गौतम "वह तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार के ऊपर ठहर सकता है। (से णं तत्थ छिज्छेज्ज वा भिज्जैज वा) हे भदन्त । वहां पर ठहर हुआ वह अनंत प्रदेशी स्कन्ध छिद भिद सकता है क्या ? (गोयमा)
हे गौतम ! ( अस्थेगहए छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा, अत्थेगइए 'नो (छिज्जेज्ज वा नो भिज्जेज्ज वा) कोई एक अनंत प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध ऐसा होता है जो छिद सकता और भिद सकता है । तथा कोई अनंत प्रदेशी स्कन्ध ऐसा भी होता है जो न छिद भी सकता है और न “भिद भी सकता है । ( एवं ' अगणिकायस्स मज्झं मज्ज्ञेणं तहिं नवरं'झियाएज्ज नाणियवं) इसी प्रकार से अनंतप्रदेशों वाला पुद्गल
स्कन्ध अग्निकाय के बीच में ठहर सकता है और वह जल सकता है। "तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से अनंत प्रदेशी स्कन्ध तलवार "अथवा उस्तरा की धार के ऊपर रहकर छिद भिद सकता है 'उसी
प्रकार से यह अग्निकाय के भीतर प्रविष्ट होकर छिद जाने और भिद् "जाने के स्थान में जल सकता है। ऐसा समझना चाहिये क्यों “कि वह अग्निकाय में रहकर छियता भिदता नहीं है । जल जाता है।
अथवा मखानी धार "५२ २ह श छ। मरे। ? (हता - ओगाहेज्जा) , ગૌતમ! તે તલવારની ધાર ઉપર અથવા અસ્ત્રાની ધાર ઉપર રહી શકે છે. (से णं तत्थ छिज्जेज्जा वा भिजेजा वा ? ) 3 महन्त ! त्यो • २ ते 'मानत अशी २४५ शुं छेहाय छ - भरेरी, सेाय छे मरे। १ (गोयमा ! अत्थे
गइए. हिंज्जेज्जवा भिज्जेनवा अन्थेगइए नो छिज्जेज्जवा- नो भिज्जेज्जवा) ts 'અનંત પ્રદેશી પુદ્ગલ સ્કંધ એ હોય છે કે જે છેદાઈ શકે છે અને કઈ છે અનત પ્રદેશી પુદ્ગલ સ્કંધ એ હોય છે કે જે છેદાઈ પણ શકતા નથી અને 'हा- Y शत नथी. ( एवं अंगणिकायस्व' मज्झ मज्झेणं तहिं णवर झिया"एंज्जा भाणियव्यं) से प्रभारी अनंत अशोकाको पुस २४५ भिडायनी વચ્ચે રહી શકે છે અને તે બળી શકે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે જેવી રીતે અનંત પ્રદેશી કંધ તલવાર અથવા અસ્ત્રાની ધાર ઉપર રહી શકે છે અને છેદાઈ ભેદાઈ શકે છે, એ જ પ્રમાણે તે અગ્નિકાયની અંદર પ્રવેશ शन मणी श छे. ते मनात प्रदेशी -२४ मनायभा हीन छाता