SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ५ उ०७ सू०२ परमाणुपुद्गलादिस्वरूपनिरूपणम् ४६३ छाया-परमाणुपुद्गलः खलु भदन्त ! असिधारां वा क्षुरधारां वा, अवगाहेत ? इन्त,अवगाहेत, तत् खल भदन्त ! तत्र छिचत वा, भिधत वा? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नो खलु तत्र शस्त्रं कामति । एवं यावत्-असंख्येयप्रदेशिकः । अनन्त प्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः, असिधारां वा, क्षुरधारां वा अवगाहेत ? हन्त, परमाणु पुगल आदि के विषय में असिधारा आदि वक्तव्यता 'परमाणु पोग्गले णं भंते!' इत्यादि । सूत्रार्थ-(परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ) हे भदन्त ! परमाणु पुद्गल तलवार की धार के ऊपर अथवा उस्तरा की धोर के ऊपर ठहर सकता है क्या ? (हंता ओगाहेज्जा) हां, गौतम ! परमाणु पुद्गल तलवार की धार के जार अथवा उस्तरा की धार के ऊपर ठहर सकता है। (लेणं तत्थ छिज्जेउजा वा भिज्जेज्जा वा) हे भदन्त ! वहां पर स्थित हुआ वह पुद्गल परमाणु क्या छिद जाता है, सिदजाता है? (गोधमा) हे गौतम ! (णो इणद्वे सम) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (णो खलु तत्थ मत्थं कमइ, एवं जाव असंखेज्जपएसिओ) क्यों कि उस परमाणुपुद्गल पर शस्त्रका वंश नहीं चलता है, इसी प्रकार से यावर असंख्यात प्रदेशों वाले स्कन्धों के विषय में भी जानना चाहिये। (अणंतपएलिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा) हे भदन्त ! अनन्नपदेशोंवाला जो स्कन्ध होता है वह क्या तलवार की धार के ऊपर अथवा उस्मरे की પરમાણુ પુદ્ગલ વગેરેના વિષયમાં અસિધારા આદિની વક્તવ્યતા– " परमाणु पोग्गले णं भंते !" त्या: सूत्रा--" परमाणु पागले णं भंते ! अधिधार वा खुरधार वा ओगाहेजा ?" है महन्त । ५२मा मुद्धत तसवारनी घार ५२ मथ। मखानी धार ७५२ २ढी छ मई १ " हता, ओगाहेन्जा" गौतम! ५२मार Ya daपानी धार ९५२ अथवा मखानी धार ९५२ २ही. श छे. "सेणं तस्य हिज्जेज्जा वा भिज्जेज्जा वा ?" महन्तशु ५२मा पुरसतना द्वारा छेदाय छ ५३, नेहाय छ मई १ (गोयमा ! ) गौतम ! ( णो इणठे समठे) म पनी शतुं नथी, (णो खलु तत्थ सत्य कमइ, एवं जाव अस खेज्ज पएसिओ) २५ ते ५२मा ५२ शसनी सन२ ८४ शती नथी, सन्यात પર્યન્તના પ્રદેશવાળા અને વિષયમાં પણ આ પ્રમાણે જે સમજવું. (अणंतपएसिए ण भंते ! खधे अमिधारचा खुरधार वा ओगाहेजा?). Hદ ! અન ત પ્રદેશેવાળે જે સ્કધ હોય છે તે શું તલવારની ધાર ઉપર
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy