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भगवतीसरे सामान्यतः कम्पते, व्येजते-विशेषेण विविधं वा कम्पते, यावत्-तं तं भावं परिणमति : उत्क्षेपणाऽवक्षेपणा-ऽऽकुश्चन-प्रसारणादिकं परिणाम प्राप्नोति किम् ? यावत्करणात्-' चलति, स्पन्दते, घट्टते, क्षुभ्यति, उदीरयति' इति संग्राह्यम् तत्र-चलति-स्थानान्तरं गच्छति, स्पन्दते-किञ्चिञ्चलति, अन्यप्रदेशं गत्वा पुनः चलति-स्थानमागच्छति वा, घट्टते-सर्वदिक्षु सचलति पदार्थान्तरं स्पृशति वा, क्षुभ्यति-पृथवीं प्रविशति क्षोभयति वा, उदीरयति-उत् भावल्येन मेरयति कि 'परमाणुपोग्गले णं भंते ! एयइ. वेयइ, जाव तं तं भावं परिणमइ' हे भदन्त ! परमाणुपुद्गल सामान्य और विशेष रूप से कंपता हैं क्या? यावत् वह उस उस भावरूप से परिणम जाता है क्या ? अर्थात् वह परमाणुपुद्गल उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुश्चन, प्रसारण आदि परिणाम को प्राप्त हो जाता है क्या? यहां " यावत् " पद से-(चलति, स्पन्दते, घहते, क्षुभ्यति, उदीरयति ) इन क्रियापदों का संग्रह हुआ है । इनका भाव इस प्रकार से है (चलति ) एक स्थान से दूसरे स्थान पर वह पुद्गल परमाणु जाता है क्या? (स्पन्दते) वह पुद्गल परमाणु कुछ २ चलता है क्या ? अथवा दूसरे प्रदेश पर जाकर पुनः अपने स्थान पर वह आ जाता है क्या ? (घट्टते) सर्व दिशाओं में वह संचार करता है क्या? अथवा पदार्थान्तर को छूता है क्या ? (क्षुभ्यति) वह पृथिवी में घुस जाता है क्या? अथवा वह क्षुभित करता है क्या ? ( उदीरयति) वह प्रबलता से प्रेरित करता है क्या ? अथवा वह पदार्थान्तर में मिल
गौतम स्वाभाना प्रश्न- 'परमाणुपोगलेणं भंते ! एयइ, वेयइ, जाव तत भाव परिणमइ ?" महन्त! ५२मार पुन सामान्य मन विशेष રૂપે કંપે છે ખરૂં ? શું પરમાણુ પુદ્ગલ તે તે ભાવરૂપે પરિણમે છે ખરું? એટલે કે તે પરમાણુ પુલ ઉક્ષેપણ, અવક્ષેપણું, આકુંચન, પ્રસરણ આદિ ला१३५ परिशुभे छ भ३१ मही 'जाव' (यावत्) ५४थी "चलति, स्पन्दते घावे, क्षुभ्यति, उदीरयति" यापहोने अड ४२वाना छे. तेना भावार्थ मा प्रभारी छ-" चलति" शुं ते पुस ५२भा मे श्यामेथी पाल न्याये गय छ ५३.? " स्पन्दते "शु युगल ५२मा थोडा प्रमाणुभां ચાલે છે? અથવા બીજા પ્રદેશ પર જઈને ફરી પિતાને સ્થાને પાછું આવી જાય छ १ "घट्टवे" शुत सधा हिशामामा सयार (मन) ४२ छ ? अथवा पहा. तरने २५0 छे ३.१ "क्षुभ्यति" ते पृथ्वीमा धुसी जय छे म३१ मथवा मित रे छ म३१ " उदीरयति" शुत पान्तरमा भणीय छ भ३१