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भगवतीपत्र . भगवानाह-'गोयमा । ज णं ते अण्ण उत्थिया एवं आइति , जाव-वेदेति. जेते एवं आईस, मिच्छाते एवं आहंसु ' हे गौतम ! यत् खलु ते अन्ययूधिकाः अन्यतीर्थिकाः एवम् उक्तरीत्या आख्यान्ति, यावत्-यावत्करणात् "भापन्ते, प्रडापयन्ति, प्ररूपयन्ति यत्-सर्वे प्राणाः, सर्वे भूताः, सर्वे जीवाः, सर्वे सत्त्वाः एवंभूतां वेदनां वेदयन्ति । ये ते एवम् यथाविहिनकर्मनिवन्धनं वेदनानुमवम् आहुः कथयन्तिस्म ते मिथ्या एवम् आहुः । ___ अथ भगवान् आह-' अहंपुणगोयमा ! एवं आइक्खामि, जाव-पख्वेमि' हे गौतम ! अहं पुनः-अहं तु एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण आख्यामि, यावत्-भाषे, प्रज्ञापकहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! ( णं ते अण्णउत्थिया) जो वे अन्यतीर्थिक जन (एवं) इस प्रकार से (आइकग्वंति) कहते हैं (जाव वेदेति) कि यावत् जीव वेदन करते हैं-अर्थात-उत्तरीति से जो अन्य तीथिकों ने कहा है, यावत्-प्ररूपित किया है-कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्तजीव, समस्त सत्त्व एवंभूत वेदना को अर्थात् यथा विहित कम कोरणवाली वेदना को वेदते हैं-भोगते हैं सो (जे ते एवमाहंसु) जो उन्होंने ऐसा कहा है सो (मिच्छा ते एवमाहंसु) यह उनका कथन मिथ्या है-यह उन्हों ने मिथ्या कहा है-ऐसा प्रभु का कथन सुनकर गौतम ने उनसे फिर इस प्रकार से पूछा भदन्त ! ठीक है उनको कथन मिथ्या है-इसमें तो दो मत हो नहीं सकते हैं-पर आपका इस विषय में क्या मन्तव्य है ? गौतम की इस मनोवृत्ति को देखकर प्रभु ने कहा (अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जाव पवेमि ) हे गौतम ! मैं तो इस विषय में इस प्रकार से कहता हूं, यावत् प्ररूपित करतो हूं-यहाँ
“गोयमा ! जण ते अण्ण उत्थिया एव आइक्खंति जाव वेति" હે ગૌતમ! તે અન્ય મતવાદીઓ એવું જે કહે છે, એવી જે પ્રજ્ઞાપના કરે છે અને એવી જે પ્રરૂપણ કરે છે કે “સમસ્ત પ્રાણ, ભૂત, જીવ અને સર્વ એવંભૂત વેદનાનું વેદન કરે છે—જે પ્રકારના કર્મ કર્યા હોય (જેવા કમબંધ मांध्या डाय) प्रारी वहना नागवे छ-" जेते एवमासु" तेभए मा प्रभाये रे ४ह्यु छ, “मिच्छा ते एवमासु" ते मिथ्या यु छ. ४उपार्नु તાત્પર્ય એ છે કે તેમની તે માન્યતા સાચી નથી.
મહાવીર પ્રભુને આ ઉત્તર સાંભળીને ગૌતમ સ્વામીએ કહ્યું-“હે ભદન્ત! જે એમની માન્યતા મિથ્યા હોય, તે આ બાબતમાં આપની માન્યતા શી છે? ... महावीर प्रभु ४९ छ-" अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि जाव परूवेमि" गौतम। या विषयमा मेषुई छु, मेवा ५३५५।