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भगवती
मुध्यते परम्परोपपन्नका यावत् जानन्ति ? गौतम । परम्परोपपत्रकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः - पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च पर्याप्ता जानन्ति, अपर्याप्ता न जानन्ति एवम् उपयुक्ताः, अनुपयुक्ताः, तत्र ये ते उपयुक्तास्ते जानन्ति, पश्यन्ति, तत् तेनार्थेन तदेव ॥ सू० ११ ॥
कि अमायी सम्यग्दृष्टि यावत् नहीं देखते हैं ? ( गोयमा । अमाघीस म्मी दुबिहा पण्णत्ता) हे गौतम! अमायीसम्यग्दृष्टि दो प्रकार के कहे गये हैं (अनंतराव वनगा य परंपरोवचन्नगा य) एक अनन्तरोपपन्नक और दूसरे परम्परोपपन्नक (तत्थ णं अनंतरोवव न्नागा न जाणंति, न पासंति) इनमें जो अनन्तरोपपन्नक सम्पादृष्टि हैं वे नहीं जानते और नहीं देखते हैं। (परंपरोवचन्नगा जाणंति) परंपरोपपन्नक जो सम्यग्दृष्टि हैं वे जानते हैं और देखते हैं । ( से केणट्टेण' भंते । एवं बुच्चड़-परंपरोचवन्नगो जाव जाणंति) हे भदन्त ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि अनन्तरोपपन्नक यावत् जानते हैं ? देखते ? ( गोयमा ! परंपरोववगंगा दुबिहापण्णता) हे गौतम | परम्परोइपन्नक सम्यग्दृष्टि देव दो प्रकार के कहे गये हैं (पज्जन्तगा य अपज्जन्तगा य) पर्याप्तक और अपर्याप्तक सो पज्जन्ता जाणंति अपज्जन्त्ता न जाणंति ) जो परम्परोपपन्नक सम्यग्दृष्टि देव पर्याप्त हैं वे तो जानते हैं और जो परम्परोपपन्नक सम्यग्दृष्टि देव अपर्याप्त हैं वे नहीं जानते हैं। ( एवं उवउन्ता अणुवत्ता ) हेली तरह से जो उपयोग से युक्त हैं वे ही जानते हैं और जो उपयोग रहित हैं वे नहीं जानते हैं । अर्थात्-अमायिसम्यग्दृष्टि, परम्परोपक और पर्याप्तक इनके उपयोगयुक्त और अनुपयुक्त इस तरह से दो भेद करलेना चाहिये-सो (तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते जाणंति पासंति ) जो
વૈમાનિકા તેને જાણુતા દેખતા નથી, પશુ પર’પાપપન્નક સમ્યદૃષ્ટિ વૈમાનિકા तेने लगे छे भने हेथे छे ? ( गोयमा ! प परोववन्नगा दुविहा पण्णत्ता ) हे गौतम ! परपरोपपन्नः सभ्यग्दृष्टि वैमानिना मे प्रशर छे - ( पज्जतगाय, अपज्जत्तगा य ) (१) 'पर्यासत भने (२) अथर्यास. ( पज्ञ्जत्ता जाणति, अपुज्जत्ता न जाण ंति) १२ ।पपन्न सभ्यद्दृष्टि पर्याप्त वैमानि ते लगे छे, थए, 'पर' परोपपन्नः सभ्यद्दृष्टि यर्यासः वैभानिओ ते, लगता नथी. ( एवं उवउत्ता अणुवत्ता) प्रमाणे नेम उपयोगथी युक्त छे, तेसो भये छे, पशु જેએ ઉપયોગથી રહિત છે, તેઓ જાણતા નથી. એટલે કે અમાયિ સય્યદૃષ્ટિ પર પરાપપન્નક અને પર્યાપ્તક, એ ત્રણેના પશુ ઉપયોગ યુક્ત અને ઉપયાગ रहित सेवा मे लेह पडवा ले . ( तत्थण जे ते उत्ता ते जाणंति पासंति )
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