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shreeद्रिका टीका २०५ ४०४ सू०११ केचलीप्रणीतमनोवथः निरूपम् २९७ तत्र ये ते अमाथि सम्यग्दृष्टयुपपनकास्ते जानन्ति पश्यन्ति । तत् केनार्थेन एवम् उच्यते - अमाथिसम्यग्दृष्टयुपपन्नकाः यावत् पश्यन्ति ? गौतम ! अमाथि सम्यग्दृष्टयो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः - अनन्तरोपपन्नकाच, परम्परोपपन्नकाच, तत्र अनन्तरोपपनका न जानन्ति, परम्परोपपन्नका जानन्ति तत् केनार्थेन भदन्त ! में उत्पन्न हैं और दूसरे वे जो अमाथि सम्यग्दृष्टियों में उत्पन्न हैं । (तत्थ णं जे ते माथिमिच्छादिड्डी उबवन्नगा ते न जाणंति) जो मायिमियादृष्टियों में अर्थात् मायिमिथ्यादृष्टिरूप से उत्पन्न हैं वे केवलज्ञानी के प्रकृष्ट मन अथवा वचन को नहीं जानते हैं ( न पासंति ) नहीं देखते हैं । (तत्थ णं जे ते अमाईसम्मदिट्ठी उववन्नगा तेणं जाणंति, पासंति) तथा जो अमाथिसम्यग्दृष्टिरूप से उत्पन्न हैं वे केवलज्ञानी के प्रकृष्ट सन और वचन को जानते हैं और देखते हैं । (तत्य णं जे ते अमाई सम्मदिडी उबवन्नगा ते ण जाणति, पासंति, से केणट्टेणं एवं वु
च - अमाई सम्मदिट्ठी जाच पासंति) हे भदन्त ! जो अमायी सम्यग्दृष्टि पर्यायरूप से उत्पन्न हैं वे केवलज्ञानी के प्रकृष्ट मन अथवा वचन को नहीं जानते हैं और नहीं देखते हैं" सो ऐसा आप किस कारण से कहते हैं
મિથ્યા દૃષ્ટિ વૈમાનિક દવા કેવળજ્ઞાનીના પ્રકૃષ્ટ મન અથવા વચનને જાણુતા नथी मने हेयता नथी. ( तत्थ ण जे ते अमाई सम्मदिट्ठी उवत्रन्नगा ते णं जाणति पासति ) पशु भाथि सभ्यगृहष्टि वैमानि हेवा ठेवणज्ञानीना अङ्गुष्ट મન અને વચનને જાણે છે અને દેખે છે.
( तत्थण जे ते अमाई सम्मदिट्ठी उवत्रन्नगा ते ण जाणंति पासंति, से वेण एव वुच्चइ- अमाई सम्मदिट्ठी जाव पासति १ ) “डे लहन्त ! भेयेो અમાયિ સમ્યગ્ દૃષ્ટિ પર્યાય રૂપે ઉત્પન્ન થયેલા છે એવા જૈમાનિક દેવા કેવળ જ્ઞાનીના પ્રકૃષ્ટ મન અને વચનને જાણી–દેખી શકે છે, ” એવું આપ શા ચારણે કહેા છે. ?
( गोयमा ! अमार्थी सम्मदिट्टी दुविहा पण्णत्तो ) हे गौतम | अभायी સમ્યગ્ દૃષ્ટિએ પ્રકારના ह्या छे - ( अनंतशेववन्नगा य, परंपरोववन्नगाय ) (१) अनन्तरोपपन्न भने (२) परभ्यरोपपन्न (तत्यणं अणतशेववन्नगा न जाणति, न पासति ) तेमांथी ने शानन्तरोपपन्न सभ्य वैभानि। छे, તેએ કેવળજ્ઞાનીના પ્રકૃષ્ટ મન અને વચનને જાણતા નથી અને દેખતા નથી, ( पर पन्नगा जाणति ) पशु पर परोपपन्नः सम्यग्दृष्टि वैमानि तेने लगे छे भने ?जे छे, (से वेणट्टेण भंते ! एवं चुच्चइ - पर परोववन्नगा जाव जाणति १ ) ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવુ કહે છે કે અનન્તરેાપપન્નક સમ્યગ્દષ્ટિ
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