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________________ ૨ भगवतीने टीका - केवलिच्छद्मस्थयोः प्रस्तावान् तयोर्विशेषवक्तव्यतामाह-'केवली f भंते 1 ' इत्यादि । ' केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाण, पास, १' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! केवली केवलज्ञानी खलु चरमकर्म वा, यत् किल शैलेशीचरमसमये अनुभूयते तत् चरमकर्म, अथ चरम निर्जरां वा, या हि शैलेशीचरमसमये जायमाना निर्जरा -- जीवमदेशेभ्यः कर्मणः सर्वथा परिशटनं तामित्यर्थः, जानाति, पश्यति किम् ? भगवानाह - 'हंता, गोमा ! जा, पास' हे गौतम! इन्त, सत्यम्, केवली चरमकर्मादिकं जानाति, पश्यति । ततो गौतमः पृच्छति - जहाणं भंते ! केवली चरिमकम्मं वा 'चरिमनिज्जरं वा ?' इत्यादि, हे भदन्त ! यथा खलु केवली चरमकर्म वा, चरम टीकार्थ- केवली और छद्मस्थ के प्रस्ताव से इन दोनों की विशेष वक्तव्यता को इस सूत्रद्वारा शास्त्रकार प्रकट कर रहे हैं - इस में सर्वप्रथम गौतम स्वामी प्रभु से पूछ रहे हैं कि - ' केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा, जोणइ, पासइ ? ' हे भदन्त ! केवली मनुष्यकेवल ज्ञानी, शैलेशी के अन्तिम समय में जो अनुभव में किया जाता है ऐसे चरम कर्म को, अथवा - चरम निर्जरा को शैलेशी के अन्तिम समय में जो जीव के प्रदेशों से सर्वथा परिशटन रूप कर्म का झड़ना होता है ऐसी उस चरम निर्जरा को क्या जानते और देखते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि- 'हंता, गोयमा ! जाणइ पोसह, 'हां गौतम ! केवली ज्ञानी चरम कर्मादिक को जानते देखते हैं। अब गौतम स्वामी पुनः प्रभु से पूछते हैं- 'जहा णं भंते ! केवली चरिमकम्मं वा चरिमनिजरं वा' हे भदन्त ! जिस प्रकार से केवली ટીકા-સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા કેવલી અને છાસ્ત્ર વિષે વિશેષ વિવેચન १रे छे. गौतम स्वाभी महावीर अलुने पूछे छे - ( केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा चरिमणिज्जर वा जाणइ पासइ ? ) हे लहन्ते ! वणज्ञानी शुद्ध अन्तिम કને અથવા અન્તિમ નિરાને જાણી દેખી શકે છે ? પ્રશ્નનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે–કેવળજ્ઞાની, શૈલેશીના અન્તિમ સમયે જેના અનુભવ કરાય છે એવા અન્તિમ કમને અથવા શૈલેશીના અન્તિમ સમયે આત્મપ્રદેશેામાંથી કર્મોને સવ થા ખ’ખેરી નાખવારૂપ જે અન્તિમ નિર્જરા થતી હેાય છે તેને શુ` જાણી દેખી શકે छे? ते प्रश्ननेो भवाम भापता भडावीर अलु छे - (हता गोयमा ! जाणइ पासइ) હા ગૌતમ ! કેવળજ્ઞાની જીવ ચરમ કર્મોકિને જાણે છે અનેદેખે છે. हवे गौतम स्वाभी भहावीर प्रभुने जीने अश्न फेवली चरिमकम्म वा चरिमनिज्जर वा ) हे लन्त ! पूछे छे - ( जहाण भंते ! देवी रीते वणज्ञानी
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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