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________________ म : नामसमर्थः भगिनुगनि, कवलिन् छदमाया मनुष्य 2 . भनिरिक वा जाटा ग ममर्यो भनि, अपितु कति rriमभानानि पनाह-'मोगा जाणा, पामर, पमागोवा शुना या भागमादिप्रमाणेन ना. हनम्योऽपि मनुष्यः अन्तकर, चरम नानि समर्थो भानि, पश्यति, इष्टुं वा समयों भवति । For: 'प- याज पन्जनि-मेकित गोन्ना ? ' अब फिम् नन भन" भुना : यम्प को नित्रायः ? नि भगवानाद-'मोना नया गानमा चलिनी मिनग्य अन्ति के 'अयं गतिशः का गोगमा ! गौतमः' जो ममयह अर्थ समर्थ नहीं है- HTTP जीय अन्नकर जीव को एय चरम शरीरी जीव को नगनमा अयान पर साक्षात रस-स्पष्ट विरादरूप से अपने TEET मो इन जीवों को देख नहीं सस्ता है-परन्तु ' सोगा PTE. TRE मागोवा 'सुन करके अश्या आगम आदि प्रमाण से जान दल मरने में समर्थ हो सकता है। 'सुनकर के ने नामलाई'म बायफ आपको पष्ट जानने के अमित मागीमयामी प्रभु में पुरते कि-'नं मोच्चा' हे मदत UP गुन करके इन्हें जानना देवनाम का क्या अभिप्राय है? पिप में प्रभु गौनय मे नाते कि. 'मोच्चा णं फेवलिम्म बा " मनु न मयान के नाम ( घर मयिक अंतकर होगा! ४.ग. मन मनर नकर जीवको जानना और देग्नना है । 'कत्र i . ... ... ... .. ... 20-गोगा! " :' श्री नी. मनु ... ... ... .. . .. 14 सादा ५४ . 2. .. ५."मां- बाना turn s' . ; 2 नेनन *. . ! ! ... ........ ......५३, गौतम
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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