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प्रमैयन्द्रिका टीका श०५ उ० ४ सू० ५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् . २६ अन्तःकरणेनैव, इमानि वक्ष्यमाणानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि प्रश्नार्थान् पृच्छावः पृष्टवन्ती, किं पृष्टवन्तौ ? इत्याह-'कइणं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासि साई सिज्झिहिति. जाव-अतं करिहिति?' हे भदन्त ! देवानुप्रियाणां भवतां कति कियन्ति खलु अन्तेवासिशतानि सेत्स्यन्ति ? सिद्धिं गमिष्यन्ति ? यावन्-अन्तं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति ? 'तएणं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पु?' ततः खलं श्रमणो भगवान महावीरः आवाभ्यां देवाभ्यां मनसा पृष्टः सन् 'अम्हे मणसी चेव, इमं एयारूवं वागरणं वागरेई आवां प्रति मनसैव इदम् एतद्रूपं वक्ष्यमाणस्वरूपं व्याकरणम् उत्तररूपं वाक्यं व्याकरोति-स्पष्टीकृतवान्-' एवं खलु देवाणुप्पिया! मम सत्त अंतेवासि सयाई, जाब-अंतं करेहिति' भो देवानुप्रियो ! ने श्रमण भगवान महावीर को बंदना की है उन्हें नमस्कार किया चर्दित्ता नमंसित्ता' वंदना नमस्कार करके फिर हम लोगोंने 'मणसा 'चेव' अन्त:करण छोरा ही इमाई एयारूचाई वागरणाई पुच्छामो' श्रमण भगवान महावीर से इन प्रश्नों कि-'कइणं भंते ! देवाणुंप्पियाणं अतेवासिसयाइं सिंज्झिहिति' हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय के कितने सो शिष्य सिद्धिपद को पावेंगे-'जाव अंतं करिहिति' यावत् समस्त दुःखों का नाश करेंगे? ' तएण समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसी पुढे ' इसके बाद अमण भगवान महावीर ने जो कि हमारे मन के द्वारा 'पूछे गये हैं 'अम्हे ' हम दोनों के प्रति 'मणसा चेव' अन्तः करण से ही इमं एयावं वागरण वागरे इ' इस प्रकार से यह उत्तर दिया 'एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम अंतेवासिसचाई जाव अतं करेहिति' हे देवानुप्रियो ! मेरे सात शिष्य सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे सकल "वदित्ता 'नमसित्ता" ! नमा२ ४शन "मणसा चेव" म भनथीve " इमाई' एयारूबाई वागरणाई पुच्छामो " श्रम सगवान महावीरने मा प्रम प्रश्न पूछयो ते!-" कइण भते! देवाणुपियाण अतेवासिसयाई 'सिन्झिहिति जाव अत'करिहिंति " " 'महत! मा५ हेवानुप्रिना सास “શિ સિદ્ધપદ પામશે અને સમસ્ત ખેને નાશ કરશે?
' “तएण समणे'भगव' महावीरे अम्हेहि मणसापुढे अभास द्वारा भमथी। भने ते प्रश्नो पूच्या ता तेवा श्रम लगवान महावीरे " अम्हे'मणसा व" मभन भनथी "इमं एय रूव वागरण वागरेइ" मा प्रमाणे सवार "माया. " एवं खलु देवाणुपिया ! मम सत्त अंतेवासिसयाई जाव अंत करे'हिति" वानुप्रियो ! भा२० ७०० शिष्य सिद्ध थरी, मुद्ध थरी, भुत