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भगवतीस्त्र वन्तं महावीरं मनसा चैव वन्देते नमस्यतश्च, 'मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति' मनसा चैव इदम् एतद्रूपम् वक्ष्यमाणस्वरूपं व्याकरणम् व्याक्रियते स्पष्टीक्रियते स्वाभिमायः अनेनेति व्याकरणम् स्पष्टीकरण हेतुभूतं प्रश्नवाक्यं पृच्छतः-किं पृच्छतः ? इत्याह-' कइणं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासि सयाई सिज्झिहिति, जाव अंते करेहिति ?' हे भदन्त ! कति कियन्ति खलु देवानुभियाणाम् भवतां अन्तेवासिशतानि कतिशतसंख्यका अन्तेवासिनः सेत्स्यन्ति-सिद्धिं गमिभगवं महावीरं अणसा चेव वंदति, नसंसनि ) महावीर प्रभु के समीप आकर उन देवों ने श्रमण भगवान् को मन से ही वंदना की-मन से ही उन्हें नमस्कार किया, बन्दना नमस्कार मानसिक, कायिक, और वाचनिक के भेद से तीन प्रकार के हैं-सो यहां पर उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर की मानसिक वंदना और मानसिक नमस्कार ही किया-कायिक वाचनिक नहीं (भणसा चेव इमं एयावं वागरणं पुच्छति) इसी प्रकार से उन्हें जो कुछ पूछने के योग्य था वह भी उन्हों ने मन से ही पूछा-तात्पर्य यह हैं कि भगवान महावीर स्वामी के समीप प्रकट होकर भी देवों ने प्रकट रूप में उनसे कुछ नहीं पूछा-किन्तु अपने मनसे ही प्रश्न किया कि-(कहणं भंते देवाणुप्पियाणं अतेवासिसयाई लिज्झिहिति) हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय के कितने सौ शिष्य सिद्धिपद को प्राप्त करेंगे ? प्रश्न को "व्याकरण" इस लिये कहा गया है कि इस के द्वारा प्रश्न का अपना अभिप्राय स्पष्ट करता है। (जाव अंतंकरेंहिंति ) यावत् कितने सौ शिष्य अन्त करेंगे-यहां यावत् શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણા નમસ્કાર કર્યા. વંદણા નમસકારના ત્રણ ભેદ छे-(१) मानसिड, (२) यि मन (3) पायि त भन्ने वामे लगवानने માનસિક વંદણુ નમસ્કાર કર્યો, વાચિક કે કાયિક વંદણું નમસ્કાર કર્યો નહીં. मणसा चेव इमं एयारूव वागरणं पुच्छति " मधे मवान महावीरने में કંઈ પૂછવું હતું તે મનથી જ પૂછયું કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ભગવાન મહાવીર પાસે પ્રકટ થયા પછી તેમણે તેમને પ્રકટ રીતે (વાણી દ્વારા), કઈ पर न पूछ्यु, ५५ भनथी । मा प्रजनी प्रश्न पूछया-" कइणं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाई सिज्झिहिंति १" सन्त! मा५ वानुप्रियना કેટલા સે શિષ્ય સિદ્ધપદ પામશે ? (પ્રશ્નને વ્યાકરણ કહેવાનું કારણ એ છે. કે તેના દ્વારા પ્રશ્નકર્તા પિતાના અભિપ્રાયનું સ્પષ્ટીકરણ મેળવી શકે છે.) “जाव अंतं करहिं ति?" मन समस्त मानो मत ४२ये ? " मी " जाव" (यावत) ५४थी " भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति, परिनिर्वास्यन्ति, सर्वदुःखानों