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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ० ४ सू०५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् २१ दयितुमाह- तेणं कालेणं' इत्यादि । 'तणं कालेणं तेणे समएणं' तस्मिन् काले वस्मिन् समये 'महामुक्काओ कप्पाओ' महाशुक्रात् कल्पात् सप्तमदेवलोकात् महास. ग्गाओ महाविमाणाओं' महास्वर्गात् महाविमानाद् 'दो देवा महिडिया,जाव महाणुभागा' द्वौ देवो महर्षिकौ, यावत्-महाद्युतिको, महाबलौ, महायशस्को, महानुभागौ, 'समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिक-समीपं मादुर्भूतौं-समागतवन्तौ 'तएणं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसा चेव वंदंति, नमसंति' ततः खलु तदनन्तरम् तौ देवौ श्रमण भग___टीकार्थ-इससे पहिले सूत्र में लूत्रकार ने भगवान् के शिष्य अति. मुक्त कुमारश्रमण अन्तिम शरीरी है ऐसा प्रतिपादित किया है । अतः इस अन्तिम शरीरता का अधिकार होने से भगवान् के जो और भी शिष्य हैं उनमें भी अन्तिमशरीरता प्रतिपादित करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा है-इनमें वे कहते हैं कि-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में और उस समय में (महासुकाओ कप्पाओ) महाशुक्र नाम के सप्तम देवलोक से (महासग्गओ महाविमाणाओ) महाशुक्र नाम के सातवें देवलोक के महाविमान से (दो देवा मविडिया जाव महाणुभागा) दो देव जो महाऋद्धि वाले यावत् महाप्रभावशाली थे (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतयं पाउन्भूया) श्रमण भगवान् महावीर के समीप आये, यहाँ यावत् शब्द से " महातिको, महाबलौ, महायशस्को" इन पदों का ग्रहण हुआ है। (तएणं ते देवा समणं
ટીકાથે–આગળના પ્રકરણમાં મહાવીર પ્રભુના શિષ્ય બાલશ્રમણ અતિમુક્તકની અંતિમ શરીરતાનું પ્રતિપાદન કરાયું છે ભગવાન મહાવીરના બીજા શિષ્યની અંતિમ શરીરતાનું પ્રતિપાદન આ સૂત્રમાં કરવામાં આવેલ છે. બે દેવોના પ્રશ્નોના જવાબ રૂપે સૂત્રકારે ભગવાનના ૭૦૦ શિષ્ય સિદ્ધપદ પામશે, मे मताव्यु छ " तेणं कालेणं तेणं समए णं" आणे भने त समये " महोसुकाओ कप्पाओ" माशु नाभना सातमा वन "महा सग्गाओ महा विमाणाओ मडावर्ग नामना भविमानमांथी “ दो देवा महिइढिया जाव महाणुभागा " महाद्धियुत, माधुतियुत मा , महायशी भने भामाशाजी मे हे “समणस्स भगवओ महावीरस्स ऑतियं पाउन्भूया " श्रम वान महावीरनी पासे माव्या. ( 'जाय' ५४थी अड
रायेा शण्होनो समावेश ४शन अर्थ मतान्या छ)" तएणं ते देवा समण भगव' महावीरं मणला चेव पंति नमस ति" तभी त्यो मावीर भनथी ।
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