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________________ २४२ भगवती सूत्रे श्रमणो भगवान् महावीरः देवाभ्यां ताभ्यां मनसापृष्टः तयोः देवयोः, मनसा चैत्र इदम् एतद्रूपं व्याकरणम् व्याकरोति यावत्-अन्तं करिष्यन्ति ! ततस्तौ देवों श्रमणेन भगवता यहावीरेण मनसा पृष्टेन मनसा चैत्र इमानिएवद्रूपाणि व्याकरणानि व्याकृतौ सन्तौ हृष्ट-तुष्ट यावत्-हृतहृदयौ श्रमण भगवन्तं महावीरं पद को पावेंगे यावत् समस्त दुःखो का अन्त करेंगे ? ( तरणं समणे भगवं महावीरे तेहि देवेहि मणसा पुढे तेर्सि देवाणं मणसा चैव इमं एयारुवं वागरे ) जय मन से इस प्रकार का प्रश्न देवों ने श्रमण भगवान् महावीर से पूछा तब श्रमण भगवान महावीर ने भी उन देवों के लिये मन से ही इस प्रकार से उत्तर दिया- ( एवं खलु देवाणुपिया ममं सत्त वासियाई सिन्निर्हिति जाव अंतं करेहिंति ) हे देवा. तुप्रियों ! मेरे सानसौ शिष्य सिद्धिपद को प्राप्त करेंगे - यावत् समस्त दुःखों का अन्त-नाश करेंगे। (नएणं ते देवा समणेणं मगवया महावीरेण मनसा पुणं भणसा चेत्र इमं एयारूवं वागरणं बागरिया समाणा हट्ट जाव हियया समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति-वंदिता नमंसित्ता मणला चेव सुस्समाणा नर्मसमाणा अभिसुहा जाच पज्जुवासंति ) इसके बाद वे देव कि जिन्हों ने मन से ही श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया और श्रमण भगवान् महावीर ने भी जिन्हें प्रश्न का उत्तर मन से ही दिया घड़े ही हर्षित हुए और सन्तुष्ट हुएयावत् हृत हृदयवाले हुए, इस प्रकार की स्थिति से युक्त होकर फिर समस्त दुःभोना अ ंतर्ता मनशे ? ( तएण समणे भगव महावीरे तेहि देवेहि माणसा पुट्टे तेर्सि देवाण मणला चेव इमं एयारूवं वागरण' वागरेइ ) क्यारे ते અને દેવાએ મનથી જ ઉપર પ્રમાણે પ્રશ્ન શ્રમણ ભગવાન મહવીરને પૂછ્યા, त्यारे भहावीर प्रलुो तेभने भनथी ४ मा प्रभाणे उत्तर आयो - ( एवं खलु देवाणुपिया ! मम सत्त अतेवासिसयाई सिज्झिर्हिति जाव अंत करे हिति ) હૈ દેવાનુપ્રિયે ! મારા સાતસે શિષ્યે સિદ્ધપદ પ્રાપ્ત કરશે અને સમસ્ત दुःभोना अ ंतर्ता थशे. (तएण ते देवा समणेण भगवया महावीरेण मणसा पुट्टेण मनसा चेव इमं एयारुव' वागरणं वागरिया समाणा हठुनुट्ठ जाव हियया समण भगव' महावीर वदति नमसति वदित्ता नर्मसित्ता मणसा चेव सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुद्दा जाव पज्जुवासंति ) न्यारे ते देवे। द्वारा भनथी પૂછાયેલા પ્રશ્નના શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે મનથી જ ઉત્તર આપ્યા ત્યારે તે બન્ને દેવે અતિશય સહતેષ પામ્યા, તેમનાં હૃદય માનથી નાચી ઉઠયાં,
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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