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भगवतीचे . अतिमुक्तः कुमारश्रमगः अन्यदा कदाचित् महादृष्टिकाये निपतति कक्षा-प्रतिग्रहरजोहरणम् आदाय वहिः संपस्थितो विहाराय, ततः खलु अतिमुक्तः कुमारश्रमणः वाहकं वहमानं पश्यति, दृष्ट्वा मृत्तिकया पालिं वध्नाति, वद्ध्या 'नौका मम नौका.
- अतिमुक्तकवक्तव्यता
तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि सूत्रार्थ- (तेणं कालेणं तेणं समएणं ) :उस काल और उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी) श्रमण भगनान महा. धीर के शिष्य एक (अइमुत्ते) अतिमुक्त (णाम) नामके अनगार थे। ये (कुमारसमणे) कुमारश्रमण थे-अर्थात् बाल्यावस्था में ही इन्होंने दीक्षा धारण की थी (पगइभद्दए जाव विणीए ) ये प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। (तएणं से अइमुत्ते कुमारसमणे अन्नया कयाई महाबुटिकायंसि निवयमाणंसि) एक दिन की बात है कि जब बहुत अधिक वरसा हो रही थी उस के बन्द होने पर कुमार श्रमण अतिमुक्तक (कक्खपडिग्गह-रयरण मायाए बहिया संपट्रिए विहारए) कक्षा काखमें रजोहरण को धारण कर एवं हाथ में पात्र को लेकर वहार भूमि के लिये- बहार गये । (तएणं अतिमुक्तं कुमारसमणे वायं वहमाणं पासइ) इसके बाद उन कुमार श्रमण अतिमुक्तक अनगार ने बहते हुए पानी को देखा । ( पामित्ता महियाए पालि बंधइ) देखकर उन्हों ने उसके आस पास मिट्टी की एक पाल
અતિમુક્ત અણગારની વક્તવ્યતા– " तेण कालेण वेण समरण" त्या
सूत्रार्थ- (तेण कालेण तेण' समएण) ते णे अन त समय (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी) श्रम भगवान महावीर शिष्य (भइमुत्ते णाम) मतिभुत नामना से सगार हा ( कुमारसमणे) તેઓ કુમારશ્રમણ હતા એટલે કે બાલ્યાવસ્થામાં જ તેમણે દીક્ષા લીધી
ती (पगइ भइए जाव विणीए) मा मद्रि प्रतिवाणा मन विनीत पर्यन्तना शुशोथी युद्धत ता. (तएण से अइमुत्ते कुमारसमणे अन्नया कयाई महावुद्धि कायसि निवयमाणसि) वे से हिवस समन्यु मारे १२ સાદ વરસી રહ્યા પછી ( વરસાદ બંધ થયે ત્યરે) તે અતિમુક્તક નામના मामुनि ( कक्खपडिग्गह-रयहरणमायाए बइिया संपट्रिए विहाराए ) मसभा રજેહરણ અને હાથમાં માત્રને લઈને શરીર ચિંતાની નિવૃત્તિ માટે બહાર ગયા. (तपण अतिमुक्ते कुमारसमणे वाहय वहमाण पासइ) त्यां ते मतिभुत मालाभुनिये पडतुं पाएनयु. (पासित्ता मटियाए पालि बंधइ) 43पालीन बन