________________
प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ५ १० १ ० १ सूर्यस्वरूपनिरूपणम् न्तराळम्-अग्निकोणम् आगच्छतः, क्रमेणैवास्तंगच्छतः ? ' पाईण दाहिणमुग्गच्छ' माचीन-दक्षिणम् अग्निकोणम् उद्गत्य वा 'दाहिणपडीणमागच्छंति ' दक्षिणप्रतीचीनम् दिगन्तरम् नैर्ऋत्यकोणम् आगच्छतः ? अथवा 'दाहिणपहीणमुग्गच्छ ' दक्षिण-प्रतीचीनम् नैऋत्यकोणम् उद्गत्य ‘पडीणमुदीणमागच्छंति ' प्रतीचीनउदीचीनं दिगन्तरं वायव्यकोणम् आगच्छतःक्रमेणैवास्तं प्राप्नुतः ? अथवा 'पडीण -उदीणमुग्गच्छ' प्रतीचीन-उदीचीनं दिगन्तरम् वायव्यकोणमिति यावत् उद्गत्य 'उदीचि-पाइण मागच्छंति' उदीचीनप्राचीनम् दिगन्तरालम् , ईशानकोणम् आगच्छतः ? अस्तं प्राप्नुतः किम् ? भगवान् तत्स्वीकुर्वन् आह-'हंता गोयमा!' इत्यादि । हे गौतम ! हन्त, सत्यं त्वत्कथनम् , यत् 'जंबूद्दीवेणं दीवे' जम्बूद्वीपे क्षिणदिशा के अन्तरालरूप क्षेत्र में अग्निकोण में क्रम से अस्त होते हैं क्या अथवा (पाईण दाहिणमुग्गच्छ) प्राचीन,दक्षिण के अन्तरालरूप क्षेत्र अग्निकोण में उदित होकर (दाहिणपडीणमागच्छंति ) दक्षिणदिशा और प्रतिचीनदिशा (पश्चिम) के अन्तरालरूप क्षेत्र नैऋत्यकोण में अस्त होते हैं क्या ? अथवा (दाहिणपडीगमुगच्छ ) नैऋत्यकोण में उदित होकर (पडीणमुदीणमागच्छंति ) वायव्यकोण में क्रम से अस्त होते हैं क्या? अथवा ( पडीण, उदीणमुग्गच्छ ) प्रतीचीन उदीचीन दिशाके अन्तरालरूप क्षेत्र वायव्यकोने में उदित होकर (उदीचि पोहणमागच्छंति ) उदीचीन प्राचीन दिशाओं के अन्तरालरूप क्षेत्र ईशान कोने में क्रम से अस्त होते हैं क्या ? इन प्रश्नों का स्वीकारात्मक उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि 'हंता गोयमा!'हा, गौतम ! जैसा तुमने प्रश्न ग है वह वैसा ही है अर्थात सत्य है- जम्बूद्वीप में दो दाहिणमागच्छंति" मनीमा ( मन हक्षिण पश्यना मामा ) शु. अस्त पामे छ ? अथवा “ पाईण-दाहिणमुग्गच्छ " शु मनिमा य - भीर " दाहिण पडीणमागच्छंति" नैऋत्य अणुभा (इक्षिरे भने पश्चिम 4. येना भूभा) मस्त पामे छ ? अथवा ".दाहिणपडीणमुगच्छ नत्य
शुभ मध्य पामीन "पडीणमुदीणमागच्छंति "शुपायव्य भारत पामे छ १ अथवा " पडीण, उदीणमुग्गच्छ"शु पायव्य अणुमा लक्ष्य पाभीन " उदीचि पाइणमागच्छंति" शनीमा मस्त पामे छ ?
मा प्रश्नोना आम नाम मापता महावीर प्रभु ४ छ -“ हता, गोयमा !" , गौतम ! मे मन छ-दीपभा मे सूर्या छ. तसा ઈશાનકેણમાં ( પૂર્વ અને ઉત્તર દિશા વચ્ચેના ખૂણામાં) ઉદય પામીને