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भगवती स्त्रियाः गर्भः सजीवपुद्गलपिण्डरूपः स्त्रीगर्भस्तं संहरन् एकस्या उदरात् गर्भाशयादेव नतु योनिद्वारा, अन्यस्या उदरे गर्भाशये एव नतु योनिद्वारा नयन् किम् गर्भाव गर्ने सहरति ? अत्र चतुर्भङ्गी वोध्या, तत्र प्रथमभङ्ग उक्त एव, अथ द्वितीयादिभङ्गान् आह-गम्भाओ जोणि साहरइ ! गर्भात् एकस्माद् गर्भाशयादेव योनि संहरति ? गर्भाशयात् गर्भमादाय योनिद्वारा उदरान्तरं प्रवेशयति किम् ? इति द्वितीयो भङ्गः, तृतीयमाह-'जोणीतो गम्भं साहरइ ? ' योनितो योनिद्वारा गर्भ वहिनिष्कास्य संहरति ? गर्भाशयान्तरं योनिद्वारं विमुच्य प्रवेशयति किम् ? किया है उसका कारण उपचार है। वैसे तो यह इन्द्र का दूत है फिर भी उपचार से उसे कह दिया है। संहरण शब्द का अर्थ है हरण करना अर्थात् एक स्त्री के उदर से-गर्भाशय से-गर्भ को हटाकर उसे दूसरी स्त्री के गर्भाशय में पहुंचा देना यही संहरण है । यहां इस विषय में सूत्रकोर ने चतुर्भगी प्रकट की है उसमें से यह प्रथम भंग तो यहां दिखला ही दिया गया है। 'गम्भाओ जोणिं साहरइ' यह द्वितीय भंग है-एक गर्भाशय से गर्भ को लेकर योनिद्वारा उसे उदरान्तर में प्रवेश करनिा यही 'गर्भात् योनि साहरह' का अर्थ है । सो क्या वह हरिनेगमेषी देव ऐसा कर सकता है ? 'जोणीओ गम्भं साहरइ' यह तृतीय भंग है योनिद्वारागर्भ को बाहर निकाल करके फिर उसे दूसरे गर्भाशय में पहुँचा देना यही तृतीय भंग का आशय है सो क्या वह देव ऐसा कर सकता है ? इस भंग में दूसरी स्त्री के गर्भाशय में उस गर्भ को सीधे पहुँचाया जाना पूछा गया है । योनिद्वारा उसे वहां पहुँचाया जाना नहीं पूछा गया है । यही बात 'योनिद्वारं विमुच्य ' इंस દિવને માટે અહીં ઔપચારિક રીતે બહરિ પદને પ્રવેગ કર્યો છે ખરી રીતે તે તે ઈન્દ્રને દૂત જ છે. આ વિષયમાં સૂત્રકારે અહીં ચતુર્ભગી (ચાર વૈકલ્પિક પ્રશ્નો) પ્રકટ કરેલ છે. તે ચતુર્ભાગીને પહેલે ભંગ તે ઉપર બતાવવામાં આવ્યું છે. હવે બીજો ભંગ (વૈકલ્પિક પ્રશ્ન) બતાવવામાં આવે છે. (गम्भाओ जोणि साहरइ ) शुत मे शाशयमांथी गमन ही न નિદ્વારા તેને બીજા ગર્ભાશયમાં ગોઠવી દે છે ?
वे त्रीने An H४८ ४२पामा मात्र छ- (जोणीओ गभ' साहरइ) શું તે નિદ્વારા ગર્ભને બહાર કાઢીને તેને બીજી સ્ત્રીના ગર્ભાશયમાં મૂકી દે છે? એટલે કે તે ગર્ભને સીધે બીજી સ્ત્રીના ગર્ભાશયમાં પહોંચાડી શકે છે કે નહીં એ જાણવાને આ પ્રશ્નને આશય છે.