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भगवती अव्यावा, योनितो गर्भ संहरति ।, प्रभुः खलु भदन्त ! हरिनैगमेपिः शक्रस्य दतः स्त्रीगर्भ नखशिरसि वा, रोमकूपे वा, संहत वा ? निहतुं वा ? इन्त, प्रभुः नो चैव तस्य गर्भस्य किञ्चिदपि आवाधां वा, व्यावाधां वा उत्पादयेत् , छरित च्छेदं पुनः कुर्यात् , इयत्सूक्ष्मं च संहरेद्वा, निर्हरेद् वा । ।सू०३ ॥ देव एक गर्भाशय में से गर्भ को लेकर दूसरे गर्भाशय में उसे नहीं रखता है और न वह गर्भाशय से गर्भ को निकाल कर योनिद्वारा उसे दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखता है तथा न वह योनिद्वारा गर्भ को निकाल कर योनिद्वारा ही उसे दूमरी स्त्री के गर्भाशय में रखता है, किन्तु 'परामुसिय परामुसिय अब्बावाहेणं अव्यावाहं जोणिओ गभं साहरह) उस गर्भ को वह अपने हाथ से बार २ इस रूप से कि जिससे उसे किसी भी प्रकार की पीड़ा न होने पावे स्पर्श करके योनिमार्ग द्वारा उसे किसी तरह की पीड़ा पहुंचे विना बाहर निकाल कर दूसरे गर्भाशय में रख देता है। (पभूणं भंते ! हरिणेगमेसी सकस्स णं दूर इत्थी गम्भं नहसिरंसि वा रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा नीहरित्तए वा) है भदन्त ! शक का दूत हरिणेगमेषी देव स्त्री के गर्भ को नखों के अग्रभाग में अथवा रोमों के छिद्रद्वार में रखने के लिये तथा उनमें से बाहर निकालने के लिये समर्थ है क्या ? (हंता पभू नो चेव णं तस्स गम्भस्स किंचि वि आवाहं वा, विवाहं वा उप्पाएज्जा छविच्छेदं पुण करेज्जा, ए सुखमं च णं माहरेज्ज वा नीहरेज्ज वा) हां गौतम ! वह स्त्रीला योनिद्वारा तना मशयमा भूटी छ ? ( गोयमा : नो गन्माओ गल्म साहरइ नो गन्माओ जोणि साहरइ, जोणियो जोणि' साहरइ) गीतम! હરિગમેલી દેવ એક ગર્ભાશયમાંથી ગર્ભને લઈને બીજા ગર્ભાશયમાં તેને મૂકતો નથી, તે ગર્ભાશયમાંથી ગર્ભને કાઢીને એનિદ્વારા તેને બીજી સ્ત્રીના - ગર્ભાશયમાં મૂકતા નથી અને તે નિદ્વારા ગર્ભને બહાર કાઢીને ચાનિદ્વારા र तन भी श्रीना नशियमा भूत नथी, पाय ( परामुसिय परामुमिय अ व्यावाहेण अब्बावाहं जोणिओ गम्भं साहरइ) मन ५ बजतनी पाडा ન થાય એવી રીતે તેના હાથથી સ્પર્શ કરીને, નિમાર્ગ દ્વારા તેને કઈ પણ પ્રકારની પીડા પહોંચાડ્યા વિના બહાર કાઢીને, બીજા ગર્ભાશયમાં મૂકી है छ. (पभूणं भते ! हरिणेगमेसी सकस णं दए इत्थीगभं नहसिरंसि वा रोमकूवमि वा साहरित्तए वा नीहरित्तए चा) . Hard ! शना दूत ७२. ગમેષીદેવ સ્ત્રીના ગને ના અગ્રભાગમાં અથવા રોમના છિદ્રદ્વારમાં राभवाने तथा त्यांची तर मा२ ४ान शतिभान डाय छे मरे। १ (हंता पभू-नो चेव णं तस्स गम्भस्स किचि वि आबाह वा, विबाह वा उपाएज्जा छविच्छेदं पुण करेज्जा, ए सुहुमं च -साहरेज्ज वा नीहरेज्ज्ञ वा) का