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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०५ २०४ सू०२ केवलीहासादिनिरुपणम् २०० नाह-'गोयमा ! सत्तविहबंधए चा, अयिहबंधए वा गौतम ! मनविधवन्धको वा, अष्टविधवन्धको वा। ननु नरकेपु दशविधक्षेत्रादिवेदनाया निरन्तरं सद्भावान् कथं नारकिणी हासौत्सुक्ययोः सम्भवः ? अत्राह-तीर्थकराण जन्म-दीक्षा-केवलोत्पत्ति-निर्याण रूपेषु चतुर्पु कल्याणकेपु-नारकिणां हासौत्सुक्ययोः सम्भवः इनि ॥ एवं जायवेमाणिए ' एवम् उपर्युक्तरीत्या जीवनारकाभिलापबत् यावत् वैमानिका वैमानिक पर्यन्तमित्यर्थः जीवनारकालापकद्वयं विहाय शेषेषु वैमानिकपर्यन्तेषु त्रयोहै ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि- ( गोयमा) हे गौतम | ऐसा नारक जीव ( सत्तविह्वधए वा अविह बंधए वा) सात प्रकार के कर्मो का या आठ प्रकार के कर्मों का बंध करता है। शंका-आपने जो नारक जीव को हास और उत्सुकता को लेकर सात या आठ कर्मों का बंधक प्रकट किया है सो यह बात इसलिये नहीं जचती है कि वहां नरकों में निरन्तर दश प्रकार कि क्षेत्र आदि वेदना पनी रहती है अतः वहां हास और उत्सुकता की संभावना ही नहीं होती है । फिर यहां यह बात कैसे कही ? सो इसका उत्तर इस प्रकार से है-तीर्थकर प्रभुओं का जब जन्मकल्याणक, दीक्षाकल्याणक, केवल ज्ञानोत्पत्तिकल्याणक इन कल्याणकों के होने पर नारक जीवों में हास और औत्सुक्यभाव स भव होता है। अतः इसी संभावना को लेकर यहां ऐसा कहा गया है । ( एवं जाव वेमाणिए) इसी तरह से-जीव और नारक के अभिलाप की तरह से-यावत् वैमानिक देवों तक के तेवीस दण्डकों में आलापक कर लेना चाहिये । परन्तु इन आलापकों उत्तर-(गोयमा । सत्तविहमधए घा अद्रविबंधए वा ) मेरो ना२५ જીવ સાત અથવા આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધે છે. શંકાનરકમાં તે નિતર દસ પ્રકારની ક્ષેત્ર આદિ વેદના ભોગવતી પડતી હેય છે ત્યાં તે હસ્થ અથવા ઉત્સુકતાની સંભાવના જ હેતી નથી. તે નારક જીવ હાસ્ય અને ઉત્સુકતાની આપેલાએ માત અથવા આઠ પ્રકારનાં કને બંધ બાધે છે, એ વાત કેવી રીતે સંભવી શકે ? સમાધાન-તીર્થંકર પ્રભુએન જન્મકલ્યા. દીકલ્યાણક, કેવળજ્ઞાને ત્પત્તિકથાક, વગેરે માંગલિક પ્રસંગે નારક એમાં પણ જાય અને ઉસુતાના ભાવ સંભવી શકે છે, તે પ્રકારની શક્યતાને અનુલક્ષીને કહેવામાં माथु छ. ( जाव येमाणिम) 27 Ma(२ भने नाना प्रश्री. म २७
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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