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भगवतीस्ते शब्दान , खरमुहीसहाणि वा, खरमुखीशब्दान् वा, काहलापद च्यिो वाधविशेष खरमुखी, तस्याः शब्दान् वा, 'पोयासदाणि वा' पोताशब्दान् वो, महती काहला पोता तस्याः शब्दान् वा, परिपरिया सदाणि वा' परिपरिता शब्दान् जय संबंध होता है तब उससे "धिक धिकू" ऐसा शब्द निकलता है, तथा दण्ड आदि के साथ ढोल आदि का जब संयोग होता है तब उस से 'धम धम' ऐसा शब्द होता है-यही बात “आकुटयमानान् शब्दान् शृणोति" इस पद द्वारा प्रकट की गई है। 'तं जहा' इसो शंकास्पदविषय को आगे के पदों द्वारा गौतम कह रहे हैं." संख़सवाणि वा" मुख पर लगाकर जब शंख उसकी वायु से पूरित होता हैतब उससे जो ध्वनि निकलती है उसका नाम शंख शब्द है। 'सिंगेसदाणिय वा' मृगादि की सींग को जब जोरसे मुख-वायु द्वारा पूरित कर दिया जाता है-तब उससे जो शब्द निकलती है वह शृंग शब्द है। बजाने वाले लोग पहिले इसमें छिद्र कर लेते हैं और फिर इसे घजाते हैं । 'संखियसद्दोणि वा' जैसा बड़ा शंख होता है उसी प्रकार का छोटा सा भी शंख होता है । यह बजाया जाता है। बजने पर जो ध्वनि निकलती है वह शंखिका शब्द है। 'खरमुहीसदोणि वा ' खरमुही नाम काहल का है। यह एक प्रकार का बाजा होता है। इसको शब्द का नाम खरमुखी शब्द है। 'पोयासदाणि वा 'बडी जो काहला होती है वही पोता कहलाती है। इसके शब्दों का नाम-ध्वनि का नाम ભરવાથી ધ્વનિ નીકળે છે. તબલા પર હાથ પછાડવાથી વનિ નીકળે છે. જુદાં જુદાં વાજિંત્રોમાંથી જુદા જુદા પ્રકારને વનિ નીકળે છે. જેમ કે ઢેલ ५२ isी साथी "मयम" अपार नीले छे. मे बात ( आकुटयमान शब्दान् शृणोति) ५४ द्वारा स्पष्ट ४२वामा मावेस है- “त'जहा" मा ५४ द्वारा खis alोना पनिन नाम मायामा मा०य छ (संखसहाणि ઘ) મુખવડે શંખને ફૂંક મારવાથી જે દવનિ નીકળે છે તેને શંખનાદ કહે छ. (सिंगसहाणि वा) भृाहिना शिम ल्यारे भुभव रथी वा ભરવામાં આવે છે, ત્યારે તેમાંથી જે અવાજ નીકળે છે. તેને “શિગનાદ” કહે છે. તેને વગાડનારા લેકે પહેલાં તેમાં છિદ્ર પાડી દે છે અને પછી તેને વાજિંત્ર तरी रुपये।। ४रे छे. (संखियसहाणि वा) नाना शमने पवाथी १ नाणे छे ते “शमिश " छे. (खरमुहासहाणि वा) मरभुमी नामना