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________________ श्रीवीतरागाय नमः जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलाल-ति-विरचितया प्रियदर्शिन्याख्यया व्याख्यया समलङ्कृतं व्याख्यापज्ञप्त्यपरनामकम् श्री-भगवतीसूत्रम् चतुर्थो भागः * पञ्चमशतकस्योद्देशकार्थसंग्रहगाथेयम्'चंप-रवि-अनिल-गठिय-सहे, छउमाऽऽउ एयण नियंठे, ... रायगिहं चंपा-चंदिमा य दस पंचमम्मि सये ॥ ____ छाया-चम्पा-रविरनिलो ग्रन्थिका शब्दः, छमस्थाऽऽयुरेजनं निर्ग्रन्थः । - राजगृहं चम्पा-चन्द्रमाश्च दश पञ्चमे शतके ॥ टीका-चतुर्थशतकान्ते लेश्याया निरूपितत्वेन पञ्चमशतके मायशो लेश्यावतां निरूपणार्थ दशोदेशकार्थसंग्रहो गाथया क्रियते-" चंप-रवि-अनिल-" इत्यादि । तत्र चम्पानगयों सूर्यविषयकमश्नस्य समाधानात्मक-निर्णयः पञ्चम पंचम शतक का पहिला उद्देशक प्रारंभ चतुर्थ शतक के अन्त में लेश्याओं का निरूपण किया गया है । सो अब इस पंचम शतक में प्रायाउन लेश्याओं से युक्त जो हैं उन का निरूपण किया जाता है। इस शतक में दश उद्देशे हैं। चंप रवि इत्यादि गाथा द्वारा उन दश उद्देशकों में क्या २ विषय कहा' है यह बात संग्रह कर प्रकट की गई है। गाथाका अर्थ इस प्रकार हैचंपानगरी में इन्द्रभूति गौतम ने प्रभु से सूर्य के विषय में जो प्रश्न પાંચમાં શતકને પહેલા ઉદ્દેશકને પ્રારંભ ચેથા શતકમાં લેસ્યાઓનું નિરૂપણ કરાયું છે. હવે આ પાંચમાં શતકમાં, એ વૈશ્યાઓથી યુક્ત જે જીવે છે તેમનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. આ શતકમાં દસ Gदेश छे. ते से देशमा मापता विषयना 'चर रवि" त्याल. गाथामा સંગ્રહ કરવામાં આવ્યું છે–આ ગાથાને અર્થ નીચે મુજબ છે. भ१
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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