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भगवतीसूत्रे समुद्रः जम्बूद्वीपं द्वीपं नो अवपीडयति, नो उत्पीडयति नो चैव खलु एकोदक करोति ? गोतम | जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भरतैरवतयोवषयोः अर्हन्तः । चक्रवर्तिनः बलदेवा वासुदेवाः चारणा विद्याधराः, श्रमणाः. श्रमण्यः श्रावकाः श्राविकाः मनुजाः प्रकृतिभद्रकाः प्रकृतिविनीताः, प्रकृत्युपशान्ताः प्रकृति प्रतनु क्रोधमान माया लोभा मृदुमादवसंपन्ना आलीना भद्रकाविनीताः (सन्ति) तेषां प्रणिधया (भा. द्वीप नामके डीप को जब कि वह उसको चारों ओर से कोट के समान घेरे हुए है किस कारण से डुबो नहीं देता है ? किस कारण से उसे पीडित नहीं करता है और किस कारण से उसे जलमय नहीं कर सकता है ? ' गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंत चक्कवटि बलदेवा, वासुदेवा, चारणा, विजाहरा, समणा, समणीओ, सावया, साचियाओ, मणुया, पगइभद्दया, पगविणीया, पगइउवसंता, पगइपयणुकोहमागमाया-लोभो, मिउमद्दव संपन्ना, अल्लीणा भद्दगा, विणीया, तेसि णं पणिहए लवणे समुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो उच्चीलेइ, नो उप्पीलेइ, नो चेव णं एगोदगं करेह त्ति" जम्बूद्वीप नामके द्वीप में भरत और ऐरावत क्षेत्रों में, अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारणमुनि, विद्याधर, श्रवण, श्रमणियां, श्रावक, श्राविकाएँ और ऐसे मनुष्य रहते हैं । जो स्वभाव से भद्र, स्वभाव से विनीत और स्वभाव से शांत परिणामवाले होते हैं । स्वभावतः ही जिनकी क्रोध, मान, माया और लोभ कषायें मंद रहती हैं। मृदु मार्दवभाव से जो संपन्न रहते हैं । जितेन्द्रिय होते हैं, भद्र, और नम्र होते हैं। દ્વીપને ચારે તરફથી કેટની જેમ ઘેરીને પડેલો છે, તે શા કારણે તેને ડુબાવી શક્ત નથી ? શા કારણે તેને પીડિત કરી શકતો નથી! અને શા કારણે તેને જળમય કરી શકતો નથી ?
उत्तर--(गोयमा) 3 गौतम ! (जंबुद्दीवेण दीवे भरहेरवएसु अरहंत चक्कवटि वलदेवा, वासुदेवा चारणा, विज्जाहरा, समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ, मणुया, पगइविणीया, पगइ उवसता, पगइ पयणुकोहमाणमायालोमा, मिउमद्दवसंपन्ना, अल्लीणा, भद्दया, विणीया, तेसिण' पणिहए लवणे समुद्दे जंबूद्दीवं दीव नो उच्चीलेइ, नो चेव णं एगोदगं करेइत्ति) भूदी नामना दीपना ભરત અને ચરાવત ક્ષેત્રમાં અરિહંત, ચકવતિ, બળદેવ, વાસુદેવ, ચારણમુનિ વિદ્યઘર, શ્રમણ, શ્રમણ, શ્રાવક, શ્રાવિકાઓ અને એવા મનુષ્ય રહે છે કે જેઓ સ્વભાવે ભદ્ર, વિનીત અને શાંત હોય છે, સ્વભાવતઃ જ જેમના ફાધ, માન, માયા, લેભ આદિ કષા પાતળા પડ્યા હોય છે, જેઓ માદેવ
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