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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० ३ लवणसमुद्र निरूपणम् ___टोका-पूर्व पृथिवीकाय-वनस्पतिकाय जीव प्रभृति शरीर सम्बन्धि वक्तव्यता प्रतिपादिता, तदधिकारात् जलकायरूपतवणसमुद्रस्य स्वरूपं निरूपयितुमाह'लवणेणं भंते ! ' इत्यादि । गौतमः पृच्छति-' लवणेणं भंते समुद्दे ' हे भदन्त ! लवणः खलु समुद्रः । चक्कवालविक्खंभेणं ' चक्रवालविष्कम्भेग, चक्रवालं गोलाकारमण्डलं, परिधिरित्यर्थः, तस्य विष्कम्भेण विस्तारेण तेन च ' केवइयं । कियान् पण्णत्ते ? प्रज्ञप्तः ? कथितः ? भगवान् आह ' एवं णेयव्वं ' एवम् उक्ता लापानुकूलतया जीवाभिगमोक्तं लवणसमुद्रसूत्रम् नेतव्यं-जातव्यम्, तदवधि माह-' जाव-भोगढिई, लोगाणुभावे ' यावत् लोकस्थितिः, लोकानुभावः, तथा टिकार्थ-ऊपर के प्रकरण में सूत्रकार ने पृथिवीकाय, वनस्पतिकाय आदि जीवों के शरीर संबंध में अपनेविचार प्रकट किये है अब वे इस सूत्र द्वारा जलकायरूप लवणसमुद्र का निरूपण कर रहे है इस विषय में गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते है कि (लवणेण भंते!) हे भदन्त ! लवण "समुद्दे " समुद्र " चक्कचालविक्खंभेणं " चक्रवाल परिधि के प्रमाण की अपेक्षा से " केवइयं पण्णत्ते" कितना कहा गया है। गोल आकार वाला जो मण्डल है उसका नाम विष्कंभ-परिधि है। इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं " एवं णेयव्वं ” उक्त आलोप के अनुकूल होने से इस विषय में जीवाभिगम सूत्र में कहा हुआ लवणसमुद्र सूत्र यहां ग्रहण करना चाहिये । यह लवणसमुद्र सूत्र इस विषय में कहांतक ग्रहण करना चाहिये-तो सूत्रकार कहते हैं कि " जाव लोयट्टिई लोगाणुभावे" लोकस्थिति और लोकानुभाव इन पदों तक वह यहां ग्रहण करना चाहि ટીકાઈ–ઉપરના પ્રકરણમાં સૂત્રકારે પૃથ્વીકાય, વનસ્પતિકાય આદિના શરીર વિષેના તેમના વિચારે પ્રકટ કર્યા છે. હવે આ સૂત્ર દ્વારા તેઓ જળકાયરૂપ લવણસમુદ્રનું નિરૂપણ કરે છે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે " लवणेण भते समुहे " BHd I सपशुसमुद्री “ चकवालविक्खभेण' केवइ पण्णत्ते ? " या qिozeal wो छ ? मेरले सणसमुद्रने परिध टा.छे ? ( २ भजन Aozen ) परिध ४ छ. “एवं णेयव्वं " निगम सूत्रमा माघे सवसमुद्रसूत्र या प्रश्नना उत्त२३३ ગ્રહણ કરવું જોઈએ તે સૂત્રમાં કહ્યા અનુસાર કથન અહીં પણ સમજવું. આ विषयमा ते “ समुद्र" सूत्र ४या सुधा अड ४२.१ (जाव लोयदिइ लोगाणु भावे) स्थिति मन तुम पर्यन्त ते सूत्र प्रह) ४२९. मही २ “जाव (याक्तू)" ५४ १५२यु छ, तेना द्वारा नीयन। सूत्रा6 प्रय
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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