________________
भगयतीसरे पन्न' पूर्वभावप्रज्ञापनों प्रतीत्य-पूर्वावस्थामनुसृत्य ' तसपाणजीयसरीरा' प्रमाण जीवनगराणि · तओ पच्छा' ततः पश्चात् 'सत्थाईआ' शस्त्रातीतानि 'जाव-अगणि चि वत्तव्वं सिया' यावत् अग्निजीवशरीराणि इति वक्तव्यं स्यात ' यावत्करणात्-शत्रपरिणामितानि अग्निध्यामितानि, अग्निजोपितानि, अग्निसेविनानि, अग्निपरिणामितानि ' इतिसंग्राह्यम् !
पुनगौतम पृच्छति-'अह भंते ! इंगाले' इत्यादि । अथ हे भदन्त ! अङ्गारः बालाघमरहिताग्निमात्रावशिष्टदग्धेन्धनम् , ' छारिए' क्षारकम् भस्म, 'भुसे' घुसम्-तुपः, 'गोमए ' गोमयः करीपः अत्र च बुसगोमये भूतपूर्वपर्यायानुवृत्त्या दन्धावस्थे गृहीतव्ये अन्यथा अत्रैव वक्ष्यमाणाग्निध्यामितादि विशेषणदानानुपपत्तिरायन गाणं' एतानि खलु अङ्गारादि गोमयान्तानि 'कि सरीरा' किं शरीराणि पूर्वभाव प्रजापना की अपेक्षा विचार करने पर (तसपाणजीवसरीरो) प्रममाणीयों के शरीर है, परन्तु (तओ पच्छा) जब ये त्रस जीव से रहित होने के बाद (सत्थाईया) शस्त्रादि द्वारा अपनी पूर्व पर्याय से दूसरी पर्याय से आक्रान्त हो जाते हैं और अग्नि द्वारा तप्त होकर राग्व रूप परिणामवाले बन जाते हैं तब ये (अगणि त्ति वत्त सिया) अग्नि जीव के शरीर कहलाने लगते हैं । ___ अब गानम स्वामी प्रभु से पुनःपूछते हैं कि (अह णं भंते!) हे भदन्त ! ( हंगाले) ज्वाला और धूम से रहित अग्नि से युक्त दग्ध इंधन, (छरिए) भस्मराख, (भुसे) भुस, (गोमए) गोमय-गोवर इनमें से भुल और गोबर ये भूतपूर्व प्रज्ञापनानय की अपेक्षा से दग्धाघस्थावाले लिये गये हैं नहीं तो आगे आने वाले ध्यामित आदि विशेपणों की संगति इनके साथ नहीं बैठ सकती है। इस तरह (एएणं) ये अंगार से लगाकर गोमय तक के पदार्थ (किं सरीरा) किन के शरीर " नमामाजीप मीरा" Artगाना २ छ, ५२-तु " तओ पच्छो" १२ : या तो “ सवाईया " शाहदास तभनी पूर्व पर्यायथा દિ- શને પર્યાયમાં આવી જાય છે અને અગ્નિદ્વારા તપીને રાપરૂપે पनि , ५३ " अगणि त्ति क्यव्यं सिया" भने गमि वनां
माये . - ' मी!" से महान ! “इंगाले " सामने धुभाथी नियन "छाति" , "भने , “गोमए" ५२ (). "e " Eri " कि सरीरा" या यानां शरीर छ ?