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-- भगवतीसमे
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भगवानाह - ' गोयमा !' हे गौतम! 'ओदणे, कुम्मासे; सुराए य' ओदने कुल्मापे. सुरायां च द्वे द्रव्ये भवतः धनद्रव्यं, द्रवद्रव्यं च तत्र 'जे घणेद यानि धनानि द्रव्याणि सन्ति एएणं ' एतानि खलु ! पुन्वभावपन्नवर्ण, पन्च पूर्वभावप्रज्ञापन प्रतीत्य पूर्वावस्थाम् अनुसृत्य पूर्वभावप्रज्ञापनापेक्षयेत्यर्थः
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पण सहजीवसरीरा वनस्पतिजीवशरीराणि - कथ्यते " तओ पच्छा ' ततः पश्चात् तदनन्तरं यदा तानि, ओदनादीनि द्रव्याणि 'सत्थाईआ ' शस्त्रातीतानि, शस्त्रे उदेरुल मुशली प्रभृतिभिराकुट्टन साधनैः अतीतानि आकुट्टन द्वारा पूर्वपर्याय अतिक्रान्तानि -आकुट्टितानि भवन्ति तथा सत्यपरिणामिया शस्त्रपरि उत्तर में प्रभु कहते हैं कि (गोमा ) हे गौतम ! ओदणे, कुम्मासे, सुराए.य) ओदन, कुल्माष और सुरा इन पदार्थों में दो प्रकार - के द्रव्य होते हैं, एक घनद्रव्य और दूसरा द्रव द्रव्य । अर्थात् ओदनादिक पदार्थ द्रव्य और द्रव ( ढिला ) द्रव्य इस तरह से दो प्रकार की . वस्तुओं वाले होते हैं । जैसे शराब में गुड़ वगैरह तो कठिन घनपदार्थ रहता है और द्रवरूप प्रवाही पदार्थ पानी रहता है । इसलिये उसमें ( जें घणे दच्चे ) जो घन द्रव्य हैं। वे ' पुन्वभावपन्नचणं पडुच्च ' अपनी पूर्व भावप्रज्ञापना के अनुसार पूर्व भावप्रज्ञापना की अपेक्षा से ' वणस्सइसरीरा ' वनस्पति जीव के शरीर कहें जाते हैं । (ओ पच्छा) और इसके बाद जब वे ओदनादिक द्रव्य ( सत्थाईया) शस्त्रातीत-शस्त्रों उदूखल-ओखली, : मुशल- मूसर, खलीन आदि कूटने के साधनों से
कुन क्रिया द्वारा पर्यायान्तरित हो जाते हैं अपनी पूर्वपर्याय से रहित होकर दूसरी पर्याय से युक्त हो जाते हैं, ( सत्थपरिणामिया ) शस्त्र परिणामित हो जाते हैं, स्व, पर और उभय के शस्त्रों द्वारा कृतं अन्य
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उत्तर- " ग्रोथमा ! " हे गौतम! " ओदणे, कुम्मासे, सुराए य" शोहन, કુલત્ય અને મદિરામાં બે પ્રકારનાં દ્રવ્યેા હોય છે- ઘનદ્રવ્ય અને પ્રવાહીદ્રવ્ય એટલે કે આદનાદિ પદાર્થ ઘનદ્રવ્ય અને દ્રવ ( પ્રવાહી ) દ્રવ્ય વાળાં હોય છે મદિરામાં ગાળ વગેરે ધનદ્રવ્યેા હાય છે અને પ્રવાહીરૂપ પાણી પણ હાય છે तेथी तेभां." जे घणे दव्वे" में धनद्रव्य छे, ते " "पुव्वभावपन्नवर्ण पडुच " पूर्व लाव प्रज्ञापना नयनी अपेक्षाये " वणस्सइ सरीरा ” वनस्पति लवनां शरीर उडेवाय छे 'पूर्वलाव- प्रज्ञायना वस्तुनी अंतीत ' पर्यायनुं ( पडेसांनी पर्यायतुं ) निपरैछे. " तओ पच्छा," त्यार माह न्यारे ते सोहनाहिङ द्रव्यने सत्थाईया " भूसण, मांडलियो, मांडणी, पराज हि शस्त्रो - साधना દ્વારા ખાંડવામાં આવે છે અને તેમને પર્યાયાન્તરિત કરવામાં આવે છે, એટલે કે પહેલાંની પર્યાયથી રહિત બનાવીને ખીજી પર્યાયથી યુક્ત કરવામાં આવે છે, त्यारे तेथे “ सत्यपरिणामिया " शस्त्र परिशाभित थर्ध लय छे-स्व पर शाथवा
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