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________________ १०२ ___भंगवतीसूत्र । छाया-राजगृहे नगरे यावत्-एवम् अवादीत्-अस्ति भदन्त ! ईपत्पुरो वाताः, पश्चाद्वाताः मन्दावाताः, महाबाता वानि ? हन्त, अस्ति, अस्ति खलु भदन्त ! पौरस्त्ये ईपत्पुरोवाताः, पथ्यावाता, मन्दायाताः, महाबाता वान्ति ? हन्त, अस्ति, एवं-पश्चिमे, दक्षिणस्मिन् , उत्तरस्मिन् , उत्तर पौरस्त्ये दक्षिण-पौरस्त्ये दक्षिण-पश्चिमे, उत्तर-पश्चिमे । यदा खलु भदन्त ! पौरस्त्ये ईपत्पुरोवाताः, (रायगिहे नयरे) इत्यादि । सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाच एवं क्यासी) राजगृह नगर में यावत् गौतम ने इसप्रकार पूछा-(अत्थि गं अंते ! ईसिं पुरेवाया, पत्था वाया, मंदावाया, महावया वायंति) हे भदन्त ! ईपत्पुरोवात, पथ्यवात, मंदवात, और महावात, ये सब हवाएं चलती हैं क्या ? (हंता अस्थि) हे गौतम ! हाँ ये सब हवाएं चलती हैं। (अस्थि णं भंते ! पुरथिमेणं ईसिंपुरेवाया, पत्थावाया, मंदाबाया, महावायावायंति ) हे भदन्त ! पूर्वदिशा में ईषत्पुगेवात, पथ्यवान, संदयान, एवं महाबात ये सब हवाएँ हैं क्या ? (हंता, अत्थि एवं पच्चस्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं, उत्तर पुरथिमेणं, दाहिणपुरस्थिमेणं, दाहिणपच्चत्थिमेणं, उत्तरपच्चत्थिमेणं) हां गौतम ! हैं । इसी प्रकार से पश्चिमदिशा में, दक्षिणदिशा में, उत्तरदिशा में तथा ईशानकोण में, आग्नेयकोण में, नैऋत्यकोण में, और वायव्य कोण में इन चार विदिशाओं में ये सब हवाएँ हैं ऐसा जानना .. (रायगिहे नयरे ) त्यादि सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाव एव वयासी) RAP नगरयां लगवाननु 'समवसरण थयु. (यात् ) गौतम स्वाभीमे मा प्रमाणे पूछयु-(अस्थिणं भंते ! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया, मंदावाया वायति १) महन्त ! शुषत्पुरोपात (નિશ્વાવયુ), પશ્યવાત, મંદવાત અને મહાવાત એ બધા પ્રકારનો વાયુ વાય छ ५२१ ? (हतां अस्थि ) , गौतम ! मे मा प्रारना वायु पाय छ (अस्थिणं भंते ! पुरथिमेणं ईसिंपुरेवाया, पत्थावाया, मंदा वाया, महोवाया वायति) महन्त ! पूर्व हिशमां षत्पुशवात, पथ्यपात, भवात भने भा. पात, ये गधा प्रान वायु पाय छ म ? (हता अस्थि ) डा गौतम वाय छ (एव पच्चस्थिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेण उत्तरपुरस्थिमेणं, दाहिणपुरस्थिमेण, दाहिणपच्चत्थिमेणं, उत्तरपच्चत्यिमेण) मे०४ प्रमाणे पश्चिम दिशामा, क्षि शाम ઉત્તર દિશામાં, ઈશાન કેણમાં અગ્નિકેણમાં, નૈઋત્યકેશુમાં, અને વાયવ્ય हमा सधा प्रानी वा पाय छ, सम सभा. (जयाण भंते ईसिंपुरेवाया
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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