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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ६ उ०५ सू०३ लोकान्तिकदेवविमानादिनिरू० ११०७
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ङ्करः ४, चन्द्राभः ५, सूर्याभः ६, शुक्रामः ७, सुप्रतिष्ठामः ८, मध्ये रिष्टाभः । कुत्र खलु भदन्त ! अर्चिः विमानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! उत्तरपौरस्त्ये । कुत्र खल भदन्त ! अर्चिमालिर्विमानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम | पौरस्त्ये । एवं परिपाट्या ज्ञातव्यम्, यावत् - कुत्र खलु भदन्त ! रिष्टं विमानं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! वहुमध्यदेशभागे । एतेषु खलु अष्टसु लोकान्तिकविमानेषु अष्टविधाः लोकान्तिकाः देवाः परिवसन्तिं,
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४, चन्द्राभ ५, सूर्याभ ६ शुक्राभ ७ और सुप्रतिष्ठाभ ८ तथा बीच में रिष्टाभ | ( कहि णं भंते ! अच्चिविमाणे पण्णत्ते ) हे भदन्तं ! 'अर्चि नामका विमान कहां पर कहा गया है । ( गोधमा ) है 'गौतम । (उत्तर पुरस्थिमेणं ) उत्तर और पूर्व के बीच में अच विमान कहा गया है । ( कहि णं भंते ! अच्चिमाली विमाणे पण्णत्ते ) 'हे भदन्त ! अर्चिली विमान कहां पर कहा गया है ? (गोधमा ) हे गौतम (पुरस्थि मेणं, एवं परिवाडीए नेयव्वं ) अचिमली विमान पूर्वदिशा में कहा गया है । इसी क्रम से अवशिष्ट विमानों को जानना चाहिये । (जाव कहि णं भंते! रिडे, विमाणे पण्णत्ते ) हे भदन्त ! यावत् रिष्ट विमान कहां पर कहा गया है । (गोयमा) हे गौतम । ( बहुमज्झ देसभाए ) बिलकुल बीच में रिष्ट विमान कहा गया है । (एएसुणं असु लोगंति य विमाणेषु अट्ठविहा लोगंतिया देवा परिवसंति ) इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव रहते हैं ।
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अल'४२, (५) यन्द्राल, (६) सूर्याल, (७) शुडाल ने (८) सुप्रतिष्टाल. अने श्योपस्य रिष्टाल नाभनुं विभान छे. ( कहि ण भंते ! अच्चिविमाणे पण्णत्ते १ ) हे लहन्त!! अर्थि नाभतुं विभान श्यां रहेतुं छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( उत्तरपुर स्थिमेण ) उत्तर भने पूर्वनी वश्ये 'ईशान शुभां गर्थि विभानं आवे छे. ( कहिणं भवे ! अच्चिमाली विमाणे पण्णत्ते १ ) डेलहन्त ! अर्थि भाली विमान म्यां मावेलु छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( पुरत्थिमेण ं, एवं परिवाडिए नेयत्रं ), अर्थिभासी विमान पूर्व दिशाभां रहेतुं छे, मेभ म्धुं छे. मेन उभे माहीनां विमानामा पशु समल क्षेत्रा. ( जाव कहिण भते ! रिट्ठे विमाणे पण्णत्ते ? ) डे लहन्त । रिष्ट विभान म्यां खावेतुं छे ?
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( गोयमा 1 ) हे गौतम! ( बहुमज्झ देखभाए ) ते आहे कृष्णुरानियोनी भराभर वस्योपम्य शिष्ट विमान भवेयुं छे. ( एए सु ण अट्ठसुलोर्गतियविमा' सु अबिहा लोगंतिया देवा परिवर्तति ) मा मह सोअन्तिः विभानामां