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________________ १०२० । भगवती सूत्रे उपरि हिटि बंभलोए कप्पे रिद्वविमाणपत्थडे ' अधः अधस्तात् ब्रह्मलोके कल्पेअरिष्टे अरिष्टनामके विमानप्रस्तटे ' एत्थ णं अक्खाडगसमचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ' अत्र खलु सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पयोः उपरिष्टात् ब्रह्मलोककल्पस्य अधस्तात् अरिष्टनामकविमानप्रस्तटे,अक्षवाटकसमचतुरस्रसंस्थान संस्थितः, अक्षवाटकः मल्लयुद्धस्थानविशेषः तद्वत् समचतुरस्त्रसंस्थानसंस्थिताः सदृशचतुष्कोणाकारेण स्थिताः अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । ता अष्ट कृष्णराजी: प्रदर्शयति-तं जहा' तद्यथा-' पुरथिमेण दो' पञ्चस्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो' पौरप्त्ये-पूर्वदिग्भागे द्वे कृष्णराजी, तथा पश्चात्ये पश्चिमदिग्भागे द्वे कृष्णराजी, तथा दक्षिणे दिग्भागे द्वे कृष्णराजी तथा उत्तरे-उत्तरदिग्भागे द्वे कृष्णराजी वर्तेते, इति सर्वाः सं मील्य अष्टौ संजाताः । तत्र 'पुरथिमऽभंतरा कण्डराई दहिगवाहिरं कण्हराई पुष्टा' पौरस्त्याभ्यन्तरा पूर्व दिग्भागाभ्यन्तरवर्तिनी कृष्णराजिः दक्षिणबाह्यां दक्षिणदिगभागवहिवर्तिनों कृष्णराजि स्पृष्टा स्पृष्टवतीत्यर्थः, ' स्पृष्टा ' इत्यत्र कतरिप्रयोग आपत्वात् । एवमग्रेऽपि ण) सनत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग के ऊपर और (हेडिं बंभलोए कप्पे रीट्टे विमाणपत्थडे) ब्रह्मलोक कल्प में नीचे रिष्टनालके विमानप्रस्तर में (एत्थ णं अक्खाडगसमचउरंस संठाणसंठियाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णताओ) नृत्यादिस्थान के समान चौकोर आकार ले-समचतुरस्त्र संस्था, न से-ये आठ कृष्णराजियां स्थित हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं"पुरथिमेणं दो,- पच्चत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणं दो" पूर्वदि. ग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा पश्चिमदिग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा दक्षिणदिग्भाग में दो कृष्णराजियां, तथा उत्तरदिग्भाग में दो कृष्णराजियां हैं। इस तरह ये सब मिलकर आठ कृष्णराजियां हो जाती हैं । (पुरथिमऽभतरा कण्हराई दाहिणवाहिरं कण्हराइं पुष्टा) इनमें उत्तर-(गोयमा ! ) हे गौतम ! ( उपि सणकुमार माहिंदाण कप्पाण) सनभार भने भाउन्द्र सोनी 6५२ (हेदि वभलोए कप्पे रिठे विमाणपत्थडे ) मन ब्रह्मा ४६५नी नीय रिट नामना विमान प्रस्तटमा ( एत्थण अक्खाडगसमचउरससंठाणसंठियाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ ) ममाना सपा समन्यारस मारे a मा ४ २al छे. " तंजहा" a भी प्रभारी छ-(पुरस्थिमेण दो) पूर्व शाम में राशिमा, ( पच्चस्थिमेण दो) पश्चिम शिमा मे प्रारिमा, (दाहिणेण दो, उत्तरेण दो) दक्षिणमा કૃષ્ણરાજિઓ અને ઉત્તરમાં બે કૃષ્ણરાજિઓ છે. આ રીતે બધી મળીને આઠ युरान्।ि थाय छ. (पुदत्थिमऽभतरा कण्हराई दाहिणबाहिर कण्हराई पुट्ठा )
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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