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प्रमेवमन्द्रिका टी० श० ६ उ०५९० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् १०४६ टीका-'कइणंभंते कण्हराईओ पण्णताओ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त! कति कियत्यः कतिसंख्यकाः खलु कृष्णराजयः कृष्णवर्णपुद्गलरेखाः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा । अह कण्हराईओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ता । गौतमः पृच्छति -'कहि णं भंते ! एयाओ अट्ट कण्णराईओ पण्णताओ ? हे भदन्त ! कुन कस्मिन् प्रदेशे एताः उपरिवगिताः अष्ट कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा! उपि सर्णकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं' हे गौतम ! सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः कल्पयोः अथवा अनन्तवार वहां उत्पन्न हो चुके हैं। पर वे वहां बादर अप्रकायिकरूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं, न बादर अग्निकायिकरूप से उत्पन्न हुए हैं न बादर वनस्पतिकायिकरूप से ही उत्पन्न हुए हैं।
टीकार्थ-तमस्काय के समान होने से अब कृष्णराजियों की प्ररूपणी सूत्रकार कर रहे हैं इसमें गौतम ने प्रभु से एसा प्रश्न किया है कि (कइ णं भंते ! कण्हराई ओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! कृष्णराजियां कितनी कही गई हैं । कृष्णवर्णवाले पुगलों की रेखाओं का नाम कृष्णरजियां हैं । सो ये कितनी हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने उनसे ऐसा कहा (गोयमा) हे गौतम! (अट्ठ कण्णराईओ पण्णत्ताओ) कृष्णराजियां
आठ कही गई हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि (कहिणं भंते ! एयाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! ये पूर्ववर्णित आठ कृष्णराजियां किस प्रदेश में कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (उप्पि सणकुमारमाहिदाणं कप्पाબાદર અગ્નિકાય રૂપે પણ ઉત્પન્ન થયા નથી અને બાદર વનસ્પતિકાય રૂપે પણ ઉત્પન્ન થયા નથી. ' अर्थ- निया ५ तमायना वा डाय छे. ते २0 सूत्रકાર હવે તેમનું નિરૂપણ કરે છે–આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાवीर असुन सेवा प्रश्न पूछे छे (कइ ण' भते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ?) હે ભદન્ત! કૃષ્ણરાજિઓ કેટલી કહી છે! ( કૃષ્ણ વર્ણવાળાં પુદ્ગલેની मामान निरमा ४ छ.)
तेन वाम भापत मडावीर प्रभु ४ छ-(गोयमा ! अटु कण्हराईओ पण्णताओ) गौतम! YAR मा ही छ. ते १० निसार्नु स्थान जापान भाट गौतम स्वामी मा प्रधान प्रश्न पूछे छ-( कहिणं भंते ! एयाभो अट्ठ कण्हराईओ पण्यत्ताओ ?) 3 Hird! a मा8 ०४२ मा ध्या પ્રદેશમાં આવેલી છે ?
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