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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ५ सू०१ तमस्कायस्वरूपनिरूपणम् १०४७ असुरः प्रकरोति, नोगः करोति ? गौतम त्रयोऽपि प्रकुर्वन्ति । अस्ति खलु भदन्त ! तमस्काये वादरः पृथिवीकायः, वादरोऽग्निकायः १ नो अयमर्थः, समर्थः, नान्यत्र विग्रहगतिसमापनकेन । सन्ति खलु भदन्त ! तमस्काये चन्द्र-सूर्य-ग्रहगणनक्षत्र-तारारूपा : १ नो अयमर्थः समर्थः, परिपार्थतः पुनः सन्ति अस्ति खलु स्तनित शब्द होता है ? बादर विद्युत् होती है ? (हंता अत्थि) हां गौतम! यह सब होता है (तं भंते ! किं देवो पकरेह, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ) हे भदन्त ! तो इस चादर स्तनित आदि को वहां कौन करता है-क्या देव करता है ? या असुर करता है ? या नाग करता है ? (गो. यमा ! तिणि वि पफरेंति) हे गौतम ! तीनों ही करते हैं। (अस्थि णं भंते ! तमुकाये बायरे पुढविकाए, बायरे अगणिकाए) हे भदन्त ! तमस्काय में क्या यादर पृथिवीकाय है ? चादर अग्निकाय है ? (णो इणटे समट्टे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (णण्णय निगहगहसमावन्नएणं) परन्तु वहां पर विग्रहगतिसमापन्न घादर पृथिवी और बादर अग्नि है। अत्थि णं भंते ! तमुक्काए चंदिम-लूरिय-गहगणणखत-ताराख्दा) हे भदन्त ! तमस्काय में क्या चंद्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र एवं तारारूप हैं ? ( णो इणहे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (पलियस्सओ पुण अत्थि) पर ये सब उसके पार्श्वभाग की
(हता अस्थि ) &I, गौतम ! ते मधु थाय है.
(त भंते ! कि देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ १) महन्त ! આ ઘગર્જન આદિ ત્યાં કોણ કરે છે? શું દેવ કરે છે? શું અસુર કરે છે? શું નાગ કરે છે?
(गोयमा ! तिणि वि पकरे ति) गौतम! ऋणे ४२ छे.
(अस्थि णं अंते ! तमुक्काए बायरे पुढविकाए, बायरे अगणिकाए ?) . ભદો! તમસ્કાયમાં શું બાર પૃથ્વીકાય છે? બાદર અગ્નિકાય છે ?
(णो इण समढें) 3 गौतम ! तमयमा ६२ पृवीय प नथा भने मा२ मशिाय ५५] नथी. (णणस्थ विग्गगइसमावन्न रण) ५२न्तु તેમાં વિગ્રહગતિ સમાપન્ન બાદર પૃથ્વી અને બાદર અગ્નિ છે.
(अस्थि णं भते । तमुक्काए चदिम-सूरिय गहगण-णखत्त-तारारूबा) ભદન્ત ! તમસ્કાયમાં ચન્દ્ર, સૂર્ય, ગ્રહગણ, નક્ષત્ર અને તારાઓ હોય છે ખરાં ?
(णो इणटे समझे) 8 गौतम! तमय यन्द्र लिप हेवा हाता नथी. (पलियस्सओ पुण अत्थि) ५२न्तु तेगा तनी नुमा डाय छ.